चंद्रिका राम का जन्म 2 जुलाई 1917 को सारण ज़िले के विजयीपुर प्रखंड के महुआवां गाँव में हुआ था जो कि भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का भी जन्मस्थान है। लड़के की प्रतिभा को देखकर राजेंद्र प्रसाद ने लड़के की पूरी पढ़ाई लिखाई का इंतज़ाम अपने खर्चे पर करवाया। मात्र 15 वर्ष की उम्र में बाबू जगजीवन राम के सचिव बन गए। साथ साथ में उन्होंने 1942 में पटना यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई पूरी की लेकिन उससे पहले 1939 में उनका विवाह प्रेम कुमारी से हुआ जो उस समय के विधायक राम बसवन राउ की बेटी थी। 1946 में पहली बार ये बिहार विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए और संविधान सभा के सदस्य बने।
संविधान सभा और पिछड़ों का सवाल :
संविधान सभा की बहस के दौरान चंद्रिका राम ने दलितों को दिए जाने वाले आरक्षण की दस वर्ष की समय सीमा का विरोध किया था और कहा था कि कांग्रेस के पिछले प्रांतीय शासन (1937-39) के दौरान यह स्पष्ट हो गया थ कि क़ानूनी प्रावधान होने के बावजूद दलितों और आदिवासियों के उत्थान के लिए योजना बनना 10 वर्षों में सम्भव नहीं है। इन्होंने आरोप लगाया कि सरकार में बैठे ज़्यादातर लोग की अभी भी निष्ठा दलित और आदिवासी के उत्थान को गम्भीरता से देखने, समझने और उसके लिए कार्य करने की नहीं है और इस विषय पर जब तक राजनेताओं में निष्ठा का अभाव है तब तक इस मुद्दे पर इतने कम समय सीमा में सफलता पाना असम्भव है।
इसके अलावा उन्होंने संविधान सभा से अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) की कमजोर राजनीतिक प्रतिनिधित्व का हवाला देते हुए उनके लिए आरक्षण के प्रावधान की माँग की। उन्होंने संविधान सभा को बताया कि कैसे बिहार के 152 विधानसभा और 30 विधान परिषद सदस्यों में से OBC वर्ग से मात्र दो व्यक्ति निर्वाचित हुए हैं। इन्होंने दामोदर स्वरूप और पंडित लोकनाथ मिस्रा द्वारा संविधान से ‘Backward Class’ शब्द हटाने की माँग का भी विरोध किया।
चुनावी सफ़र:
आज़ादी के बाद वर्ष 1951-52 में जब देश का पहला लोकसभा चुनाव हुआ तो कांग्रेस ने इन्हें सारण उत्तरी लोकसभा से टिकट नहीं दिया क्यूँकि यह सीट आरक्षित नहीं था और चंद्रिका राम दलित थे। चंद्रिका राम की जगह इस सीट से कांग्रेस ने झूलन सिन्हा को टिकट दिया जिन्होंने विद्याभूषण शुक्ला को 44937 मतों से हराया।
चंद्रिका राम कभी लोकसभा का चुनाव नहीं लड़े। ये देश से अधिक बिहार की राजनीति में अधिक रुचि रखने लगे थे और वर्ष 1952 और 1957 के चुनाव में विधायक भी निर्वाचित हुए। वर्ष 1962 में भोरे विधानसभा क्षेत्र दलित के लिए आरक्षित नहीं रहा जिसके कारण इनसे यह सीट छिन गई और कांग्रेस के ही राज मंगल मिश्र के पाले में चली गई जो अगले पंद्रह वर्षों तक यहाँ से विधायक रहे। विधायकी छिनने के बाद कांग्रेस ने इनका सम्मान करते हुए बिहार विधान परिषद का सदस्य निर्वाचित किया जिस पद पर ये वर्ष 1971 तक रहे। 1977 में जब फिर से भोरे विधानसभा दलित के लिए आरक्षित हुआ तो इन्हें टिकट नहीं दिया गया।
दलित विमर्श:
दलित और आदिवासी राजनीति में चंद्रिका राम की भूमिका हमेशा प्रखर रही। कांग्रेस के साथ जुड़ने के बाद वर्ष 1944 में ये बिहार के हरिजन सहकारिता समाज के सूपरवाईजर और हरिजन सेवक संघ के सदस्य बनाए गए। वर्ष 1947 में इन्हें बिहार के डिप्रेस्ड क्लास लीग का अध्यक्ष और राष्ट्रीय डिप्रेस्ड क्लास लीग के सचिव नियुक्त किया गया। और आज़ादी के बाद बिहार के कृषि मज़दूरों की हालत समझने के लिए समिति का गठन किया और उसके साथ साथ राष्ट्रीय स्तर पर भूमिहीन मज़दूरों पर बनाई गई समिति का सदस्य बनाया गया।
चंद्रिका राम के प्रयासों से बिहार में क्रिमिनल ट्राइब ऐक्ट रद्द किया गया जिसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार ने इसे ख़त्म करने के लिए इनकी अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जिसने राष्ट्रीय स्तर पर क्रिमिनल ट्राइब ऐक्ट को रद्द करने का सफल प्रयास किया। मात्र तीस वर्ष की उम्र में इतना मुक़ाम हासिल करने वाले ये हिंदुस्तान के कुछ विरले राजनेता थे। इस दौरान इन्होंने बिहार के हरिजनों पर कई शोधपरक लेख भी लिखे और उनके उत्थान के लिए हमेशा प्रयासरत रहे। इन्होंने भारतीय योजना आयोग के लिए ‘A Plan for Harijan and Other Backward Classes’ शीर्षक से पिछड़ों के उत्थान के लिए योजना पत्र भी लिखा।
चंद्रिका राम का परिवार:
चंद्रिका राम के बाद इनके पुत्र अनिल कुमार वर्ष 1985 में भोरे विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के विधायक बने लेकिन वर्ष 1990 के चुनाव में जनता पार्टी के इंद्रदेव माँझी से हार गए। वर्ष 2005 में अनिल कुमार दुबारा इस क्षेत्र से विधायक बने लेकिन इस बार लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल से। अक्तूबर 2005 में नीतीश लहर में भी अनिल कुमार RJD से चुनाव जितने में कामयाब रहे। 2010 में वो हारे लेकिन 2015 में फिर से कांग्रेस की सीट पर जीते। इनके और इंद्रदेव माँझी के बीच यह चुनावी जंग तीन दशकों तक चली।
चंद्रिका राम के दूसरे पुत्र सुनील कुमार वर्ष 2020 में पहले MLC बने और फिर गोपालगंज के भोरे से जदयू के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए और मध निषेध व निबंधन मंत्री भी बने। विधायक बनने से पहले सुनील कुमार एक IPS अधिकारी थे जो बिहार के डीजी भी रह चुके हैं। इसके पहले सुनील कुमार के बड़े भई अनिल कुमार भी भोरे विधानसभा क्षेत्र से 1985 में कांग्रेस और 2005 के दोनो चुनाव में RJD के टिकट पर चुनाव जीतकर विधायक बन चुके थे। इस क्षेत्र में कोयरी और रविदास जाति के मतदाताओं का अनुपात लगभग 30 प्रतिशत है।

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