भारत के इतिहास में आख़री जातिगत जनगणना साल 1931 में हुई थी और उस जनगणना में मोदी या मोढ घाँची नाम की कोई जाति पूरे गुजरात में नहीं थी। 2002 में जब मोदी जी की जाति को गुजरात की मोदी सरकार ने OBC लिस्ट में शामिल किया था तब उनकी जाति का नाम मोढ घाँची के नाम से दर्ज किया गया था। लेकिन मोढ और घाँची दो अलग अलग उप-जातियों के नाम की चर्चा 1931 की जनगणना में ज़रूर है। साल 1931 के गुजरात में मोढ, ब्राह्मणों की भी उपजाति थी, बानियाँ की भी उपजाति थी और जैन की भी एक उपजाति का नाम मोढ था। इसी तरह से घाँची हिंदू भी होते थे और मुस्लिम भी होते थे।
आजकल स्वयं प्रधानमंत्री और उनके समर्थक मोदी जी की जाति मोढ घाँची को उत्तर भारत के तेली जाति के समतुल्य बताते हैं। लेकिन गुजरात के 1931 की जनगणना में तेली जाति का या तो अलग जाति के रूप में ज़िक्र है या फिर कहीं कहीं तेली और घाँची का एक साथ ज़िक्र है और वो भी ख़ासकर दक्षिण गुजरात में, लेकिन तेली जाति का ज़िक्र कहीं भी मोढ जाति के साथ नहीं है। तेली और घाँची दोनो जातियों का अलग अलग जाति के रूप में आँकड़े दिए गए हैं। इसलिए तेली और घाँची एक नहीं है। मोढ जाति का सर्वाधिक ज़िक्र ब्राह्मण की एक उपजाति के रूप में किया गया है, गुजरात के 1931 की जनगणना में।
1931 की जनगणना में कहीं भी मोढ घाँची का ज़िक्र तो नहीं है, लेकिन 1921 की जनगणना में मोढ घाँची का ज़िक्र है। गुजरात के सिर्फ़ बड़ोदा क्षेत्र में साल 1921 की जनगणना में मोढ घाँची जाति का ज़िक्र है जिसकी कुल आबादी उस समय लगभग छह हज़ार हुआ करती थी। लेकिन उस क्षेत्र के मोढ घाँची जाति के लोग दशकों से अपनी जाति के लोगों की गणना मोढ घाँची की जगह मोढ बानियाँ के नाम से गणना करवाने की माँग कर रहे थे, जैसे बिहार में भूमिहार खुद को ब्राह्मण जाति में शामिल करने का माँग करते थे, पंजाब में खत्री और महाराष्ट्र में महार खुद को क्षत्रिय जाति में गणना करवाने की माँग कर रहे थे।
अधिकारिक तौर पर तो ब्रिटिश ने कभी भी न तो भुमिहर को ब्राह्मण के रूप में गणना किया और न ही खत्री या महार को क्षत्रिय के रूप में, इसलिए मोढ़ी घाँची को भी कभी बनियाँ जाति में शामिल नहीं किया, अधिकारिक तौर पर। लेकिन जैसे बिहार में भुमिहार अपने आप को ब्राह्मण दिखाने के लिए अपना सरनेम शर्मा, वर्मा, से लेकर उपाध्याय और मिश्रा तक लिखने लगे वैसे ही मोढ़ी घाँची समाज के लोग भी भारतीय जनगणना से पूरी तरह ग़ायब हो गए और खुद को मोढ़ी बानियाँ के नाम से गणना करवाने लगे।
मोढ़ी घाँची जाति के लोगों का कहना था कि चुकी उनके समाज के लोग किस भी घाँची के साथ न तो शादी करते हैं, न घाँची का बनाया खाना खाते थे, मोढ घाँची जाति ब्राह्मण और बानियाँ के बराबर शिक्षित भी है और ये लोग न ही तेल, दूध या घी का व्यापार करते है, और इसलिए उन्हें घाँची नहीं समझा जाए बल्कि बानियाँ समझा जाए। मोढ़ी घाँची समाज के लोग ज़्यादातर अलग अलग चीज़ों की दुकान का कारोबार करते थे, जैसे मोदी जी चाय की दुकान का कारोबार करते थे। आजकल गुजरात में घाँची का मतलब दुकान भी होता है।
आप सोच रहे होंगे की 1931 में तो गुजरात था ही नहीं तो फिर गुजरात राज्य की जातीय गणना कैसे हो गई? गुजरात राज्य तो साल 1960 में बना है। आज का गुजरात मुख्यतः 1931 के उत्तरी बॉम्बे प्रांत (ठाना ज़िला को छोड़कर), बड़ोदा महाराज का क्षेत्र, भावनगर के ज़मींदार का क्षेत्र और नवानगर के ज़मींदार के क्षेत्र को मिलाकर बनाया गया था। चुकी 1931 की जनगणना रिपोर्ट सभी ज़िलों का अलग अलग है इसलिए अगर आप आज के गुजरात के सभी ज़िलों के आँकड़ों को एक जगह इकट्ठा कर लेंगे तो 1931 के गुजरात की जातीय जनगणना रिपोर्ट बना सकते हैं और न्यूज़ हंटर्ज़ ने ऐसा ही किया है।
फ़र्ज़ी OBC:
कांग्रेस ने पहली बार 2014 के लोकसभा चुनाव के समय आरोप लगाया कि मोदी जी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए 1 जनवरी 2002 को अपनी जाति को OBC की सूची में शामिल करवा दिया ताकि मोदी जी पिछड़ों के नाम पर राजनीति कर सके। खुद को पिछड़ा बता सकें और पिछड़ों के नाम पर वोट माँग सके।
गुजरात सरकार ने कांग्रेस के आरोप के जवाब में बोला कि मोढ घाँची को OBC सूची में शामिल करने का फ़ैसला 25 जुलाई 1994 को ही ले लिया गया था, जब गुजरात में कांग्रेस की सरकार थी। फिर कांग्रेस ने पलटकर जवाब में कहा कि 25 जुलाई 1994 को गुजरात पिछड़ा आयोग ने मोढ घाँची जाति को OBC सूची में शामिल करने का सिर्फ़ सुझाव दिया गया, गुजरात की कांग्रेस सरकार ने उस समय गुजरात पिछड़ा आयोग के सुझाव को रद्द कर दिया था।
सवाल तो ये भी उठता है कि अगर मोढ घाँची जाति को साल 1994 में ही OBC लिस्ट में शामिल कर लिया गया था तो फिर 2002 में दुबारा शामिल करने की क्या ज़रूरत पड़ी? मीडिया ने आपको कांग्रेस और भाजपा के बीच के इस आरोप प्रत्यारोप के खेल को खेल की तरह बता, पढ़ा और दिखा दिया। न कोई फ़ैक्ट चेक, न कोई दस्तावेज की पुष्टि। लेकिन न्यूज़ हंटर्स आज आपके लिए सारे दस्तावेज लेकर आया है।
1972 का गुजरात पिछड़ा आयोग का सुझाव में गुजरात के घाँची जाति को OBC में शामिल करने का सुझाव दिया गया था लेकिन सिर्फ़ मुस्लिम घाँची जाति को OBC सूची में शामिल करने का सुझाव दिया था, हिंदू घाँची जाति को नहीं। और ये है 1993 के राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग द्वारा चिन्हित सभी OBC जातियों की रिपोर्ट, इसमें भी कहीं पर मोढ या मोढ घाँची शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है। घाँची शब्द का इस्तेमाल किया गया है लेकिन सिर्फ़ घाँची मुस्लिम के लिए।
1999 में भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में मोढ घाँची जाति को OBC सूची में शामिल करने का पहला फ़ैसला लिया जाता है, राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग के द्वारा। उसके बाद नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से ठीक छः महीने पहले मोढ घाँची को राष्ट्रीय OBC सूची में शामिल कर लिया जाता है और नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से छः महीने के भीतर गुजरात के राज्य स्तरीय OBC सूची में भी मोढ घाँची जाति को शामिल कर लिया जाता है।
अब थोड़ा समझते हैं कि आख़री ये मोढ घाँची जाति है क्या? कैसे ये घाँची जाति से अलग है? इस मोढ घाँची जाति का इतिहास क्या है? इतिहास में इनकी क्या सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति थी। किस आधार पर इस जाति को OBC सूची में शामिल किया जाना चाहिए था या नहीं किया जाना चाहिए था।
देश में आख़री जातिगत जनगणना साल 1931 में हुई थी। उस जातिगत जनगणना के अनुसार गुजरात में मोढ घाँची जाति का कहीं कोई ज़िक्र नहीं है जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूँ। घाँची जाति का ज़िक्र है लेकिन वो भी ज़्यादातर मुस्लिम के लिए। पूरे गुजरात में हिंदू घाँची की कुल आबादी 29,208 थी जिसमें से बड़ोदा राज्य में हिंदू घाँची की कुल जनसंख्या 14,300, और उत्तरी बॉम्बे प्रांत वाले गुजरात जो की आजकल दक्षिण गुजरात है वहाँ हिंदू घाँची की जनसंख्या 14,861 थी।
इस दक्षिण गुजरात क्षेत्र में अहमदाबाद से लेकर सूरत का हिस्सा आता था और इस क्षेत्र में रहने वाले हिंदू घाँची समुदाय के लोगों के बीच साक्षरता दर 1931 में ही 41.31 प्रतिशत थी। इसी तरह से बड़ोदा राजा वाले क्षेत्र में हिंदू घाँची का साक्षरता अनुपात 40.59 प्रतिशत था। OBC की सूची में किसी भी जाति को सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर शामिल किया जाता है। जिस घाँची जाति का साक्षरता दर 1931 में ही 40 प्रतिशत से अधिक हो वो शैक्षणिक रूप से पिछड़ा कैसे हो गया? ये आज की बात नहीं हो रही है ये 92 साल पहले के साक्षरता दर की बात हो रही है।
92 साल पहले गुजरात के नवानगर राजा के क्षेत्र में राजपूत का साक्षरता दर मात्रा 10.53% था, बड़ोदा के राजपूत का साक्षरता डर 19.29% था, भावनगर के राजपूत का साक्षरता डर 15.59% था, पटेल का साक्षरता दर पूरे गुजरात में कहीं भी 20 प्रतिशत से अधिक नहीं था और साक्षरता का राष्ट्रीय औसत मात्रा 12.20% था। यानी की साल 1931 में देश का साक्षरता दर 12.20% था और गुजरात के घाँची जाति का साक्षरता दर 40% था उसके बावजूद मोढ घाँची जाति को शैक्षणिक रूप से पिछड़ा मान लिया गया। लेकिन किस आधार पर?
मोढ घाँची बनाम घाँची:
अब आपको ऐसा लग सकता है कि मोढ घाँची जाति हिंदू घाँची जाति का ही एक उपजाति होगा, जिसकी सामाजिक और शैक्षणिक स्थित अन्य हिंदू घाँची जातियों के शैक्षणिक और सामाजिक स्थित से अधिक पिछड़ा होगा इसीलिए मोढ घाँची जाति को OBC सूची में शामिल किया गया होगा और बाक़ी घाँची जातियों को नहीं किया गया होगा। जैसे कि बिहार में यादव जाति का सदगोप उपजाति यादव की अन्य उपजातियों से अधिक पिछड़ा माना जाता है।
लेकिन मोढ घाँची जाति में मामला बिल्कुल उल्टा है। शिक्षा में कैसे घाँची जाति राजपूत, मराठा और पटेल जैसी जातियों से भी तीन गुना आगे थे ये हम पहले ही बता चुके हैं आपको। सामाजिक सम्मान में भी मोढ़ घाँची जाति के लोग अपने आप को अन्य घाची जाति से ऊपर मानते थे।
1921 के जनगणना रिपोर्ट में यह लिखा हुआ है कि मोढ घाँची जाति के लोग अपने आप को अन्य घाँची जाति के लोगों से ऊँचा स्तर का समझते हैं और वो भारतीय जनगणना आयोग को साल 1891 से ही लगातार अर्ज़ी दे रहे थे कि उनको मोढ घाँची नहीं बल्कि मोढ बानियाँ में गणना किया जाए क्यूँकि मोढ घाँची जाति के लोग न तो घाँची जाति के पारम्परिक घी, दूध या तेल का व्यवसाय करते थे, न घाँची जातियों के साथ विवाह समबंध रखते थे और यहाँ तक कि मोढ घाँची जाति के लोग किसी भी घाँची जाति के लोगों का बनाया खाना तक नहीं खाते थे। और वो शिक्षित भी अधिक थे।
मतलब मोढ घाँची जाति के लोग बोल रहे थे कि वो लोग घाँची हैं ही नहीं बल्कि वो लोग बानियाँ है। यानी की मोढ घाँची जाति के लोग बाक़ी घाँची जाति के लोगों के साथ छुआ-छूत का व्यवहार करते थे, मोढ घाँची जाति के लोग बाक़ी घाँची जाति के लोगों के साथ अछूत का व्यवहार करते थे। अगर 1931 में ऐसा था तो फिर 2002 में मोढ जाति के लोगों को OBC सूची में किस आधार पर शामिल किया गया?
हिंदुस्तान में आख़री जातिगत जनगणना या यूँ कहें कि हिंदुस्तान के अलग अलग जातियों का विस्तृत सामाजिक आर्थिक स्थिति की जनगणना साल 1931 में हुई थी और 1931 के बाद जितने भी पिछड़ा आयोग बने उन्होंने 1931 के जनगणना के आधार पर ही अपनी रिपोर्ट बनाई, और अगर 1931 की जनगणना में मोढ़ी घाँची जाति के बारे में ऐसा लिखा हुआ जैसा की हमने अभी आपको बताया तो फिर मोढ़ी घाँची जाति के लोग न तो शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं न ही सामाजिक रूप से पिछड़े हैं तो फिर उनको किस आधार पर OBC में शामिल किया गया?
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इसी तरह का विवाद पटेल जाति के लोगों को भी OBC सूची में शामिल करने के लिए हुए आंदोलन के दौरान हुआ था। गुजरात के पटेल सभी तरह से सम्पन्न हैं लेकिन उसके बावजूद वो लोग OBC सूची में शामिल होने की माँग कर रहे थे। पटेल की माँग और उनके आंदोलन से गुजरात सरकार विचलित थी क्यूँकि गुजरात में पटेल सबसे बड़े वोटर हैं लेकिन मोढ़ी घाँची की तो जनसंख्या पूरे गुजरात की जनसंख्या का एक भी प्रतिशत नहीं है तो फिर मोढ़ी घाँची को OBC सूची में क्यूँ शामिल किया गया?
1931 की जनगणन में पटेल और घाँची दोनो को एक ही सामाजिक वर्ग में रखा गया था और साक्षरता के मामले में पटेल जो उस समय कनबी जाति की अलग अलग उपजातियों के नाम से जाने जाते थे उनका साक्षरता दर घाँची से आधा भी नहीं था। फिर भी घाँची को OBC में जगह मिल गई लेकिन पटेल को नहीं मिली। क्या मोढ घाँची को OBC सूची में जगह नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत प्रयास से मिला है, ताकि मोदी जी पिछड़ों की राजनीति कर सके?
ऐसे कई सवाल हैं जिसका जवाब सम्भवतः सिर्फ़ और सिर्फ़ जातिगत जनगणना में मिल सकता है। मोढ घाँची जाति को OBC बोलना तो फिर भी संवैधानिक है क्यूँकि उन्हें अधिकारिक तौर पर OBC सूची में शामिल किया जा चुका है, लेकिन 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान मोदी जे ने तो खुद को यानी की मोढ घाँची को अति-पिछड़ा बोल दिया था। उनके पास ऐसा बोलने का कोई आधार नहीं था लेकिन न्यूज़ हंटर्ज़ जो भी बोलता है बिना साक्ष्य के नहीं बोलता है। आप भी बिना साक्ष्य के किसी भी बात पर विश्वास मत कीजिए। बने रहिए न्यूज़ हंटर्ज़ के साथ।
अब थोड़ी बात कर लेते हैं मोढ के ऊपर। दरअसल मोढ उन लोगों को कहते हैं जो मोढेरा के आसपास रहते हैं। मोढेरा वर्तमान गुजरात के महेसन ज़िले में हैं जो अहमदाबाद ज़िला का पड़ोसी ज़िला है और ब्रिटिश शासन के दौरान बड़ोदा के महराज का क्षेत्र हुआ करता था। साल 1931 की जनगणना के अनुसार बड़ोदा राज क्षेत्र में तीन तरह के मोढ थे: मोढ ब्राह्मण की आबादी 9039 थी, मोढ बानियाँ 4268, और मोढ जैन बानियाँ की आबादी 21 थी।
इसी तरह से गुजरात में घाँची भी कई तरह के थे। गुजरात में उन सभी लोगों को घाँची बोलते हैं जो द्रव पदार्थ का उत्पादन और व्यापार करते थे। मुस्लिम में जो द्रव प्रदार्थ का व्यापार करते थे वो मुस्लिम घाँची हो गए, जो तेल का व्यवसाय करते थे वो तेली घाँची हो गए, जो दूध और घी का व्यवसाय करते थे वो हिंदू घाँची कहलाते थे।
उदाहरण के लिए साल 1931 में दक्षिण गुजरात जो उस समय उत्तर बॉम्बे प्रांत हुआ करता था जिसकी सीमा सूरत से अहमदाबाद तक थी वहाँ कुल मुस्लिम तेली की आबादी 18,453 थी, हिंदू तेली की आबादी 18,563 थी, और हिंदू घाँची की 14,861 थी। यानी की न घाँची कोई जाति होती थी न मोढ़ कोई जाति होती थी। द्रव पदार्थों का व्यापार करने वालों को गुजरात में घाँची बोलते थे और मोढेरा क्षेत्र में राहने वाले सभी लोगों को मोढ़ बोलते थे।
मोढ़ के घाँची लोग तेल, दूध या घी का व्यापार सदियों पहले धीरे धीरे बंद कर चुके थे, और उसी के आधार पर मोध के घाँची अंग्रेजों से बार बार आग्रह कर रहे थे कि उन्हें मोढ़ बानियाँ जाति के रूप में गणना किया जाए हिंदू घाँची के रूप में नहीं। लेकिन सवाल उठता है कि आज़ाद हिंदुस्तान में OBC की पहचान दो आधारों पर होनी तय हुई थी। और वो दो आधार थे सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ापन।
लेकिन घाँची तो पहले से ही बहुत शिक्षित थे और मोढ़ घाँची सामाजिक रूप से अपने आप को अन्य घाचियों को नीच की नज़र से देखते थे। तो फिर मोढ़ घाँची को इस आधार पर गुजरात की मोदी सरकार ने पिछड़ों की सूची में शामिल किया और स्वयं मोदी जी तो 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान खुद को अति-पिछड़ा भी बोल चुके थे। उनके पास न तो ऐसा बोलने का कोई आधार नहीं था।

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