HomeHimalayasGeorge William Traill: कुमाऊँ का पहला गोरा फ़िरंगी राजा

George William Traill: कुमाऊँ का पहला गोरा फ़िरंगी राजा

Traill पहाड़ के उन अधिकारियों की लिस्ट में से एक हैं जिसमें हेनरी रेम्जे और हर्शिल भी शामिल हैं।

Traill की उम्र मात्र पंद्रह वर्ष थी जब वो हिंदुस्तान आता है। सोलह वर्ष की उम्र में वो फ़र्रुख़ाबाद का Assistant Magistrate बनता है, 20 वर्ष की उम्र में कुमाऊँ का Assistant Commissioner बनता है और 21 वर्ष की उम्र में Commissioner. हिंदुस्तान आने से पहले वो East India Company College (Haileybury, Hertfordshire) से स्नातक करता है, हिंदुस्तान पहुँचने के बाद सबसे पहले हिंदी और फ़ारसी भाषा का अध्ययन करता है और हिंदुस्तान के सर्वाधिक सफल प्रशासनिक अधिकारी के रूप में अपना नाम दर्ज करता है। 

George William Traill को पहाड़ियों ने ‘कुमाऊँ का राजा’ और कुमाऊँनी जोशी माना। Pilgrim Barron के शब्दों में कुमाऊँ के लोगों की नज़र में ये अधिकारी, बद्री-विशाल (विष्णु) के बाद दूसरा सर्वाधिक आराध्या थे। Traill ने अपने कार्यकाल के दौरन केदारनाथ-बद्रीनाथ यात्रा के लिए पुराने रास्तों की मरमत्त करवाई और नए रास्तों का निर्माण करवाया। उन्होंने अल्मोडा में नंदा देवी यात्रा समेत कई धार्मिक संस्थानो को दान भी दिए। 

Traill के प्रशासनिक सुधार:

हिंदुस्तान के अन्य भूभागों के विपरीत Traill ने पहाड़ों में अंग्रेज़ी शासन व्यवस्था की एक अलग पद्धति विकसित किया जिसे आगे चलकर कुमाऊँ के प्रसिद्ध Commissioner हेनरी रेम्जे ने और अधिक विकसित और विस्तारित किया। इस पद्धति को किताबों और प्रशासनिक शब्दावली में ‘Extra-Regulation Order’ भी कहा जाता है। आगे चलकर इसी पद्धति को हेनरी रेम्जे के कार्यकाल के दौरन ‘Rule of Benevolence’ भी कहा गया। 

Traill उत्तराखंड में रहने वाले पहाड़ियों को दुनियाँ का सर्वाधिक ईमानदार, शांतिप्रिय और अपराध-मुक्त प्रकृतिक जीवन जीने वाले लोग समझते थे। Traill वर्ष 1816 से 1835 तक कुमाऊँ के Commissioner के पद पर कार्यरत रहे। अपने कार्यकाल के दौरन उन्होंने गोरखा शासन द्वारा वसूले जा रहे भूमिकर सहित अनेक करों को कम किया, कर संग्रहण की प्रक्रिया में बिचौलियों की भूमिका को कम किया। 

इसे भी पढ़ें: क्या कुमाऊँ के ‘नवाब हेनरी रेम्जे’ पहाड़ों में ईसाई धर्म के प्रचारक थे ?

कृषि और कृषिगत स्त्रोतों से ब्रिटिश सरकार के लिए घटी आमदनी को पुरा करने के लिए Traill ने सरकारी सेवाओं के लिए कुली-बेगार व्यवस्था का इस्तेमाल किया। लेकिन कुमाऊँ के लोगों ने अपने इस प्रिय गोरे राजा का ये कदम बहिचक स्वीकार किया। 

Traill के कार्यकाल और कार्यकाल के बाद इस क्षेत्र में यात्रा पर आने वाले कई यात्रियों और ईसाई पादरियों ने स्थानिये लोगों के बिच Traill की प्रचलितता और प्रेम की प्रशंसा की। इनकी प्रशंसा में पादरी Bishop Heber अपनी यात्रा वृतांत (Narrative of a Journey Through The Upper Provinces of India, From Calcutta to Bombay, 1824-1825) में लिखते हैं कि Traill स्थानिये लोगों के बिच इतना अधिक घुमते रहते थे की यूरोप से आए किसी यात्री को उनसे मुलाक़ात करना बहुत मुश्किल हो जाता था। 

Traill
George William Traill

अपने कार्यकाल के दौरन Traill ने कई किताबें और रेपोर्ट लिखी जो आज भी उत्तराखंड के पहाड़ों ख़ासकर कुमाऊँ क्षेत्र का इतिहास लिखने के लिए महतवपूर्ण स्त्रोत माना जाता हैं। इनमे से प्रमुख है:

  1. Statistical Sketch of the Kumaon,’ Asiatic Researches XVI (1828) 
  2. ‘Statistical Report of the Bhotia Mehals of Kumaon,’ Asiatic Researches XVII (1832)
  3. ‘Statistical Report of the Bhotia Mehals of Kumaon,’

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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