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गुमनाम नेताजी: बिहार के इस सांसद ने पाकिस्तानी मुस्लिम को भारत की नागरिकता देने और भारत में 10 वर्षों के लिए तानाशाह शासन की वकालत की थी !

गया और नवादा के पहले सांसद ब्रजेश्वर प्रसाद के पिता ब्रिंदाबन राय गया के ज़मींदार थे। लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एम॰ए॰ करने के बाद लॉ की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। वर्ष 1930 के दशक के अंत होते होते ये बिहार के गया, नवादा और जहानाबाद क्षेत्र के सर्वाधिक प्रखर कांग्रेसी नेता के रूप में उभरे और आज़ादी के बाद भारतीय संविधान सभा के सदस्य से लेकर सांसद बनकर कई संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे। वर्ष 1950 में इन्होंने पहली बार मनोनीत सांसद के रूप में सपथ ली और वर्ष 1951-52 में सम्पन्न हुए देश के पहले लोकसभा चुनाव में नवादा (गया पूर्वी) से सांसद निर्वाचित हुए। 

राजनीतिक जीवन:

ब्रजेश्वर प्रसाद पटना विश्व विद्यालय के पहले छात्र थे जिन्होंने असहयोग आंदोलन के दौरान नामक क़ानून तोड़ा था। जब ये छात्र थे तब ही वर्ष 1937 में ये गया के म्यूनिसिपल समिति के सदस्य निर्वाचित हो गए थे। 1941 में जब महात्मा गांधी ने पूरे देश में कुछ सत्याग्रहियों को व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिए चयनित किया था तो उसमें इनका भी नाम था। इसके बाद इन्हें पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया और एक वर्ष जेल में रखा। जेल से बाहर आने के बाद भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गया ज़िले कि पूरी ज़िम्मेदारी कांग्रेस ने इन्हें ही दिया था जिसके बाद नवम्बर 1944 तक इन्हें दुबारा कारावास में रखा गया। 

जब ये वर्ष 1950 में मनोनीत सांसद और फिर 1951-52 में गया पूर्वी (नवादा) से निर्वाचित सांसद बने तो इन्हें Standing Advisory Committees of Ministers of Education and Communication और Committee on States and the Oil Seeds Committees का भी सदस्य बनाया गया। ब्रजेश्वर प्रसाद बिहार राज्य की राजनीति से अधिक राष्ट्रीय राजनीति में संलग्न थे। अपने विद्यार्थी जीवन से ही महात्मा गाँधी की पत्रिका ‘यंग इंडिया’ और लाला लाजपत राय की पत्रिका ‘द पीपल’ के रेगुलर रीडर थे। 

संविधान बहस: 

संविधान सभा की बहस के दौरान इन्होंने यह सुझाव दिया कि कम से कम दस वर्षों के लिए हिंदुस्तान के सभी राज्य सरकार को भंग कर दिया जाए और देश की पूरी सत्ता सिर्फ़ संविधान सभा के अध्यक्ष अर्थात् राष्ट्रपति के पास हो जिनकी मदद के लिए सिर्फ़ चार मंत्री हो: नेहरू, पटेल, मौलाना आज़ाद और राजागोपालाचारी। ब्रजेश्वर प्रसाद कांग्रेस में रहते हुए नेहरू सरकार की गुट-निरपेक्ष विदेश नीति के विरोधी भी थे और भारत के चीन और सोवियत संघ के साथ मज़बूत रिश्ते के पक्षधर थे और ‘Delhi-Peking-Mscow Asis’ का निर्माण करवाने का सुझाव दिया था।

इनका मानना था की चुकी ज़्यादातर राज्यों कि आर्थिक स्थिति सहीं नहीं और देश के अलग अलग राज्यों के विकास स्तर में वृहद् स्तर पर असमानता है जिसे दूर करने के लिए राज्यों की स्वायत्ता को कम नहीं बल्कि कुछ वर्षों के लिए ख़त्म करने के ज़रूरत है। इसके अलावा देश के वो राज्य जिनकी सीमा अन्य देशों के साथ मिलती है वहाँ सुरक्षा के विशेष प्रबंध की ज़रूरत है जो मज़बूत और केंद्रिक्रित केंद्र सरकार के द्वारा ही किया जा सकता है। हालाँकि संविधान सभा के सभापति और राष्ट्रपति इस सुझाव पर बहस नहीं करवाना चाहते थे लेकिन इनके ज़िद्द पर ये बहस हुई और फिर इस सुझाव को वापस ले लिए। 

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चित्र: गया और नवादा के पहले सांसद ब्रजेश्वर प्रसाद ।

इसे भी पढ़े: “गुमनाम नेताजी: नवादा का एकमात्र निर्दलीय सांसद जो लंदन से PhD की उपाधि लेकर आया था

एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे पर संविधान सभा में अपनी राय रखते हुए ब्रजेश्वर प्रसाद ने बाबा साहेब अम्बेडकर से आग्रह किया कि पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं के साथ साथ वहाँ से आने वाले मुस्लिमों को भी भारत में समान नागरिकता दिया जाना चाहिए क्यूँकि इस देश का इतिहास हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई का है। इस मुद्दे पर संविधान सभा में इनकी पंजाबराव देशमुख से तीखी बहस हुई थी।

सांसद: 

वर्ष 1951-52 में देश में जब पहला लोकसभा चुनाव होने लगा तो ब्रजेश्वर प्रसाद ने गया पूर्वी (नवादा) से कांग्रेस के उमीदवर के रूप में चुनाव लड़ा और सांसद बने। वर्ष 1957 और 1962 में हुए दूसरे और तीसरे लोकसभा चुनाव में गया के पृथक सीट होने के बाद वो गया से चुनाव लड़े और लगातार तीन बार सांसद बने। 1967 में गया लोकसभा क्षेत्र दलित के लिए आरक्षित हो गया जिसके बाद ब्रजेश्वर प्रसाद चुनाव नहीं लड़े।

दर असल वर्ष 1952 के लोकसभा चुनाव के दौरान गया क्षेत्र में आज का गया ज़िला के अलावा, नवादा, जहानाबाद, अरवल, और औरंगाबाद ज़िला आता था। इस बड़े क्षेत्र को तीन लोकसभा क्षेत्रों में बाट दिया गया था: गया पूर्वी, गया पश्चमी और गया उत्तरी। नवादा ज़िला के आस पास के क्षेत्र को गया पूर्वी में रखा गया था, गया से पश्चिम में स्थित औरंगाबाद ज़िला के आसपास के क्षेत्र को गया पश्चिमी संसदीय क्षेत्र में रखा गया था और गया, और अरवल ज़िले के आसपास के क्षेत्र को गया उत्तरी लोकसभा संसदीय क्षेत्र बनाया गया था। इस तरह से ब्रजेश्वर प्रसाद नवादा और गया दोनो के पहले सांसद थे।

वर्ष 1957 के चुनाव में इन्हीं तीन क्षेत्रों को गया, नवादा और औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र के रूप में नामकरण किया गया। गया पूर्वी को नवादा बना दिया गया, और गया पश्चिमी को औरंगाबाद। लेकिन इस दौरान उत्तरी गया संसदीय क्षेत्र के कुछ हिस्सों को गया में मिला दिया गया और कुछ को नवादा में जबकि गया पूर्वी और गया पश्चिमी संसदीय क्षेत्र के एक बड़े हिस्से को मिलाकर गया संसदीय क्षेत्र बनाया गया। वर्ष 1967 में गया और नवादा संसदीय क्षेत्र से कुछ हिस्सों को काटकर जहानाबाद संसदीय क्षेत्र बनाया गया। बाद में चलकर वर्ष 1973 में नवादा और 1986 में जहानाबाद को पृथक ज़िला बनाया गया। 

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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