शीर्षक: Beyond Bokhara: The Life of William Moorcroft
लेखक: Garry Alde
प्रकाशन वर्ष: 1985
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एक सर्जन जो बाद में जंतु वैज्ञानिक बनता है और फिर अधिक पैसे कमाने की चाह में ईस्ट इंडिया कम्पनी की नौकरी करने के लिए हिंदुस्तान पहुँच जाता है। अफ़ग़ानिस्तान, तुर्कीस्तान, बोखारा, लद्धाख की अन्वेषक यात्रा के बाद अंततः गढ़वाल-कुमाऊँ की पहाड़ियों से होते हुए पश्चमी तिब्बत की इनकी खोज हिंदुस्तान के इतिहास में इस शक्स का नाम हमेशा के लिए लिखने वाला था।
इस शक्स को लिखने की इतनी आदत थी कि जब नजिबाबाद से पहाड़ों में घुसने से पहले अपना आख़री ख़त लिख रहा था तो उस ख़त में 176 पराग्राफ था। अपनी यात्रा के दौरन इन्होंने लगातार स्केच और मानचित्र बनाते रहे जो सांकेतिक है पर क्षेत्र के बारे में बेहतर समझ बनाने में बहुत मदद करती है। इसके बावजूद अपने रोमांचक जीवन को यह व्यक्ति अपने जीवन में किसी किताब की शक्ल नहीं दे पाया।

जबकि दूसरी तरफ़ Sir Alexander Burnes (16 May 1805 – 2 November 1841) जैसे यात्री को बोखारा की खोज और उससे सम्पर्क करने के लिए Bokhara Burnes की उपाधी दे दी गई थी क्यूँकि William Moorcroft (1767-1825) के विपरीत उन्होंने अपनी खोजी यात्रा का वृतांत (डाउनलोड लिंक) लिखकर छोड़ गए थे।
इस किताब के प्रकाशित होने से बोखारा की उपाधी के असली हक़दार का दावा Moorcroft के लिए किया जाने लगा। बोखारा की खोज और उनसे सम्पर्क बनाने के अलावा Moorcroft बामियान में बुद्ध भगवान की मूर्तियों और हिंदुओं की पवित्र तीर्थस्थल मानसरोवर झील को खोजने वाले भी पहले यूरोपीय खोजी यात्री थे।

Moorcroft के खोजी जीवन और इस किताब दोनो का एक महत्वपूर्ण हिस्सा उत्तराखंड से सम्बंधित है। 372 पृष्ठ की इस किताब में पृष्ठ संख्या 126 से 230 तक उनके कुमाऊँ-गढ़वाल यात्रा का वर्णन है। इस यात्रा के दौरन वो नजिबाबाद, रामनगर, कर्णप्रयाग, जोशिमठ, नीती, ‘मिलाम’ (नैन सिंह रावत का गाँव) होते हुए मानसरोवर झील तक जाते हैं और फिर वापस देहरादून में अपनी यात्रा समाप्त करते हैं।
वर्ष 1812 में जब Moorcroft अपने सहयोगी हाइडर यंग हीरसेय के साथ उत्तराखंड होते हुए तिब्बत जा रहे थे तो उत्तराखंड के पहाड़ों पर गोरखा का राज था जो अपने क्रूरता और ब्रिटिश सरकार के विरोध के लिए जाने जाते थे। ऐसे में Moorcroft द्वारा उत्तराखंड होते हुए यात्रा करना ख़तरों से भरा था। इस यात्रा के दौरन इस यात्रा के दौरन उन्हें गोरखा ने गिरफ़्तार भी कर लिया था और अगस्त से दिसम्बर 1812 तक बंदी भी रखा। यात्रा के दौरान Moorcroft ने अपना नाम मायापूरी और उनके सहयोगी हाइडर यंग हीरसेय ने अपना नाम हरगिरी रखा था।

Moorcroft नामक इस ब्रिटिश अन्वेषक की उत्तरखंड होते हुए तिब्बत यात्रा दो नज़रिय से ब्रिटिश सरकार के लिए महत्वपूर्ण रही। एक उत्तराखंड में गोरखा राज को ख़त्म करने के लिए Moorcroft के अध्ययन और उनके द्वारा गोरखा की क्रूरता का वर्णन को ब्रिटिश द्वारा कुमाऊँ-गढ़वाल पर हमला करने का आधार बनाया गया।
और दूसरा Moorcroft ने हिंदुस्तान में ब्रिटिश सेना के लिए अच्छे नस्ल के घोड़ों की कमी पुरा करने के लिए इन्होंने तिब्बती घोड़ों के साथ भारतीय घोड़ों का कृत्रिम प्रजनन की विधी खोजा। असल में Moorcroft को ईस्ट इंडिया कम्पनी में नौकरी घोड़ा देखरेख विभाग में जंतु वैज्ञानिक के रूप में ही मिली थी जिसकी तनख़्वाह उस दौर में तीन हज़ार मासिक थी।
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