“अटल (बिहारी बाजपेयी:भाजपाई) की सभा में महिलाओं पर चाकु व लात घूंसों से प्रहर, कपड़े फाड़े, गहने लूटे, प्रेस फोटोग्राफ़रों के कैमरे तोड़े पत्रकारों समेत दर्जनो घायल।”
उपरोक्त वक्तव्य नैनीताल से छपने वाले उत्तर उजाला के स्थानिये संस्करण में 23 मार्च 1996 को छपा था। संदर्भ था रूद्रपुर में आयोजित BJP के नेता अटल बिहारी बाजपेयी की जनसभा जिसका विरोध करने पहुँचे थे उत्तराखंड संघर्ष समिति और UKD के सदस्य। स्थान था शहर का गांधी पार्क और माहौल था 1996 का लोकसभा चुनाव प्रचार। दरअसल ज़्यादातर राज्य आंदोलनकारी लोकसभा चुनाव का विरोध कर रहे थे।

भाजपाई लठैत:
प्रदर्शनकारियों (राज्य-आंदोलनकारी) ने अटल बिहारी बाजपेयी के क़ाफ़िले को काला झंडा दिखाने व ‘राज्य नहीं तो, चुनाव नहीं’ का नारा लगाने का प्रयास किया और RSS व BJP के सदस्यों (भाजपाई लठैतों) ने उनपर लाठी-डंडों के साथ अभद्र गालियाँ बरसाई। चुकी उत्तराखंड राज्य आंदोलन के लगभग सभी जलसों में महिलाओं की भागेदारी सर्वाधिक होती थी इसलिए इस घटना के दौरन सर्वाधिक दुर्व्यवहार/दुस्टाचार उन्ही के साथ हुआ।
मामला यहीं नहीं रुका। इस घटना में दुर्व्यवहार का शिकार स्थानिये पत्रकार भी हुए। जब पत्रकारों ने सड़क पर पिटाई के विरोध में जनसभा स्थल पर जनसभा का विरोध करने का प्रयास किया गया तो उन्हें जनसभा स्थल पर ही फिर से भाजपाई लठैतों द्वारा कुट दिया गया। भाजपाई लठैतों को तीसरा मौक़ा मिला जब सभा स्थल पर उपस्थित कुछ आंदोलनकारियों ने फिर से अटल जी को काले झंडे दिखाए और ‘राज्य नहीं तो चुनाव नहीं’ के नारे लगाए और फिर से कुंट दिए गए। शाम को जब इन तीन कुटाइयों के विरोध में आंदोलनकारी और पत्रकार समग्र रूप से अमर उजाला चौक पर कुटाई के विरोध में पुतला फुंका प्रदर्शन किया।
शाम तक सभा खत्म हो चुकी थी और ‘भाजपाई लठैतों’ का काम पुरा हो चुका था इसलिए चौथी बार कुटाई नहीं हुई। सिर्फ़ डिग्री कालेज के छात्र नेता तारकेंद्र वैष्णव ‘तारु’ को पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किया गया। शाम तक कुटाई में घायल हुए UKD नेता दीवान सिंह बिष्ट के घाव और दर्द पर मरहम लगाने कांग्रेस नेता और नैनीताल से दो बार सांसद रह चुके महेंद्र पाल अस्पताल पहुँचे। अटल जी के स्थान पर किसी कांग्रेसी नेता का रैली होता तो ‘भाजपाई लठैतों’ की जगह लाठियाँ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के हाथ में होती और मरहम लगाने भाजपाई नेता आते।
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आंदोलन और भाजपाई:
ये वो दौर था जब उत्तराखंड में पृथक राज्य आंदोलन वर्ष 1994 के अपने स्वर्णिम दौर को फिर से ज़िंदा करने का प्रयास कर रहा था। वर्ष 1994 के दौरान तो सभी राजनीतिक पार्टियाँ और उनके सदस्य राज्य आंदोलन में अपनी भूमिका को सर्वाधिक सिद्ध करने के होड़ में लगे हुए थे लेकिन चुनाव के दौरन उनका सर्वाधिक कार्य होता है चुनाव लड़ना और भाजपाई लठैत (उत्तर उजाला के पत्रकार महोदय के शब्दों में) भी वही कर रहे थे: चुनाव की तैयारी और इस दौरन आने वाले किसी भी प्रकार के अड़चन का निपटारा।
भाजपाई लठैतों के लिए इस बार अड़चन उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी और महिलाएँ थी, जिनका निपटारा किया गया। जी नहीं ये ग़ैर पहाड़ियों की सभा नहीं थी। अटल जी तो सिर्फ़ मुख्य अतिथि थे। सभा के मुख्य आयोजक BJP के गढ़वाल सांसद भुवन चंद्र खंडूरी और उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति के अध्यक्ष मनोहर कांत ध्यानी थे।
घटना से कुछ ही महीने पहले (1996) ‘उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति’ (1989) और ‘उत्तराखण्ड छात्र संघर्ष समिति’ (1994) की तर्ज़ पर या यूँ कहें कि उसकी नक़ल पर BJP द्वारा राज्य आंदोलन का श्रेय लेने के लिए बनाया गया ‘उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति’ बनाया गया था। ‘उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति’ के नाम में BJP या RSS या कोई और हिंदुत्ववादी संस्था या शब्द का उल्लेख नहीं था पर इसके लगभग सभी सदस्यों का BJP–RSS से गहरा नाता था। बस राष्ट्रवादी एकता को दर्शाने के लिए ‘उत्तराखंड’ के स्थान पर ‘उत्तरांचल’ शब्द का इस्तेमाल किया गया क्यूँकि ‘खंड’ शब्द पृथकता को दर्शाता है।
मार्च में हुई इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना के छः महीने के भीतर कांग्रेस की सरकार ने पृथक उत्तराखंड राज्य की घोषणा कर दी जिसका विधिवत गठन नवम्बर 2000 में जब केंद्र में अटल जी की भाजपा सरकार थी। सरकार बदली तो नाम भी बदल गया और उत्तराखंड की जगह ‘उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति’ की तर्ज़ पर उत्तरांचल राज्य बना।
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