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कैसे 150 वर्ष पुराने बिहार संग्रहालय से विलुप्त हुई थी 686 प्राचीन मूर्तियाँ

नव-निर्मित बिहार संग्रहालय:

वर्ष 2015 में बिहार के बेली रोड पर 498 करोड़ की लागत से 5.6 हेक्टेयर ज़मीन पर बिहार के इतिहास और गौरव को समेटने के उद्देश्य से बने भव्य बिहार संग्रहालय का उद्घाटन हुआ। पर आज भी बिहार के इतिहास और गौरव से सम्बंधित लगभग सात सौ ऐतिहासिक कृतियाँ कलकत्ता में स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में बग़ाने की तरह पड़ी हुई है जिसका पिछले डेढ़ सौ वर्षों से कोई सुध लेने वाला नहीं है। 

निर्माण की इस प्रक्रिया में कनाडा और जापान की कई प्रसिद्ध कम्पनियों को ज़िम्मेदारी दी गई जिन्हें । बिहार संग्रहालय के डिज़ाइन के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर-राष्ट्रीय पुरस्कार व ख्याति मिली। लेकिन बिहार संग्रहालय आज भी अपने प्राचीन कलाकृतियों का इंतज़ार कर रहा है कि क़ब उसे कलकत्ता से लाकर यहाँ रखा जाए और उनपर गहन शोध के बाद प्रत्येक कलाकृतियों के इतिहास को खोदा जाय। 

चित्र: बिहार शरीफ़ में 1870 के दौर में तैयार होता बिहार संग्रहालय। स्त्रोत: British Library.

पुराना बिहार संग्रहालय:

बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि बिहार संग्रहालय पहली बार 1870 के दशक में बिहार शरीफ़ शहर में बना था और देश के कुछ सर्वप्रथम बने संग्रहालयों में से एक था। इसके पूर्व इस संग्रहालय का नाम “Broadley Collection” भी था क्यूँकि बिहार के कलेक्टर A M Broadley द्वारा इस संग्रहालय का निर्माण करवाया गया और भारी मात्रा में उत्खनन करवाकर इसमें प्राचीन मूर्तियाँ व शिल्पकलाओं का संग्रहण किया गया। 

वर्ष 1891 आते आते इस संग्रहालय में संग्रहित चीजें इतने प्रसिद्ध हुई कि ब्रिटिश सरकार ने इस संग्रहालय के साथ साथ बिहार से अन्य मूर्तियों के संग्रहण को कलकत्ता स्थित भारत संग्रहालय में स्थानांतरित करने का फ़ैसला लिया। स्थानांतरण करने के इस दायित्व का कार्य पूर्ण चंद्रा मुखर्जी को दिया गया। अप्रिल-मई 1891 में मुखर्जी 735 शिल्पियाँ लेकर कलकत्ता गए लेकिन कलकत्ता संग्रहालय के 1892 की रिपोर्ट में कहा गया कि मुखर्जी ने अभी तक अपनी कोई रिपोर्ट संग्रहालय को प्रस्तुत किया है। 

चित्र: बिहार संग्रहालय में संग्रहित शिल्पों के फ़ोटो को Broadly द्वारा व्यवस्थित और संकलित भी किया गया था। स्त्रोत: Sir Benjamin Simpson in the 1870s

इसे भी पढ़ें: Bakhtiyarpur: In The Name of Naming Deconstructive History

वर्ष 1894 तक जब मुखर्जी ने बिहार संग्रहालय से लाई सात सौ से अधिक शिल्पों की रिपोर्ट भारतीय संग्रहालय कलकत्ता को नहीं सौंपा तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया और उसी के साथ दफ़्न हो गया बिहार संग्रहालय से लाए गए उन शिल्पों का विस्तृत विवरण। हालाँकि बाद में जब वर्ष 1913 में पटना संग्रहालय का निर्माण हुआ तब इनमे से कुछ शिल्पों को नव-निर्मित बिहार संग्रहालय में स्थानांतरित किए गए लेकिन इनके विवरण आज भी अस्पष्ट है। 

प्रयास पतित है:

लेकिन अभी भी अगर एक गम्भीर प्रयास किया जाय तो न सिर्फ़ बिहार के उन दुर्लभ प्राचीन शिल्पों को वापस लाया जा सकता है बल्कि उनके विस्तृत विवरण की भी पहचान की जा सकती है। उदाहरण के लिए शिमला में संग्रहित ‘List of Archaeological Photo-Negatives Stored in the Office of the Director General of Archaeology in India’ के संग्रहण में बिहार संग्रहालय के लगभग अठारह नेगेटिव सुरक्षित संग्रहित हैं जिसके आधार पर बिहार संग्रहालय के कई शिल्पों की पहचान हो सकती है। 

चित्र: Alexander Meyrick Broadley, Source: Vanity Fair, 14-12-1889, University of Virginia Fine Arts Library.

बिहार शरीफ़ में स्थित बिहार संग्रहालय से लाए गए इन ज़्यादातर शिल्पों को बिहार के राजगीर, नालंदा, बड़गाँव, बेगमपुर, डपठु, घोसरावाँ, आदि स्थानो से संग्रहित किया गया था। बिहार में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यह ज़रूरी है कि इन शिल्पों को जल्दी से जल्दी नव-निर्मित बिहार संग्रहालय में फिर से लाया जाय।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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1 COMMENT

  1. […] वर्ष 1870 में बिहार का पहला राज्य स्तरीय बिहार संग्रहालय का निर्माण बिहार शरीफ़ में किया गया। इसके पहले […]

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