बिहार जातीय गणना 2022 के आँकड़ों और भारतीय जनगणना 1931 के जातिगत आँकड़ों से सम्बंधित कई भ्रामक या यूँ कहें की झूठे आँकड़े फैलाए जा रहे हैं और ख़ासकर सोशल मीडिया पर। बिहार जातिगत जनगणना 2022 के आँकड़ों को 1931 की जनगणना के उन जातिगत आँकड़ों के साथ तुलना किया जा रहा है जिसमें जनगणना के समय सिर्फ़ बिहार ही नहीं बल्कि आज का झारखंड और ओड़िसा भी शामिल था। 1931 में बिहार में सिर्फ़ बिहार नहीं बल्कि आज का झारखंड और ओड़िसा भी बिहार का ही हिस्सा था। इसलिए वो सब आँकड़े भ्रामक है जो 1931 के बिहार के जातीय समीकरण के नाम पर आपको परोसे जा रहे हैं। इसी तरह से बिहार जातिगत जनगणना 2022 के आँकड़ों में किन्नरों की जनसंख्या को लेकर भी बवाल मचा हुआ है, कि साल 2011 की भारतीय जनगणना में बिहार में किन्नरों की कुल आबादी चालीस हज़ार से भी अधिक था तो फिर बिहार जातीय गणना 2022 में किन्नरों की जनसंख्या मात्र 825 कैसे हो सकती है?
हिंदुस्तान में आख़री डिटेल्ड और परिपूर्ण जातिगत जनगणना साल 1931 में हुई थी। 1941 में भी जातिगत जनगणना हुई थी लेकिन विश्व युद्ध के कारण वो जनगणना पूरी तरह से नहीं हो पायी थी इसलिए हमारे पास सबसे बेहतर जातिगत आँकड़े साल 1931 की जनगणना के ही है। और अब बिहार सरकार ने साल 2022 में जातिगत जनगणना करवाके, उसकी रिपोर्ट जारी करके देश को यह पहली बार मौक़ा दिया है कि वो इस बात की तुलना कर सके कि पिछले 90 सालों के दौरान किस जाति की जनसंख्या कितनी घटी है या कितनी बढ़ी है। हमारे पास साल 1931 की जातिगत जनगणना के बिहार के हर ज़िले की रिपोर्ट है, ज़िलेवार ढंग से है, लेकिन चुकी बिहार सरकार ने अभी तक जारी जातीय गणना 2022 की रिपोर्ट में ज़िला स्तर पर आँकड़े जारी नहीं की है इसलिए हम इस लेख को राज्य स्तर तक के आँकड़ों तक ही सीमित रख सकते हैं।
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साल 1931 में बिहार झारखंड और ओड़िसा एक ही राज्य हुआ करता था, इसलिए हमने उन ज़िलों के आँकड़ों को एक साथ , एक जगह किया, जो ज़िले आज भी सिर्फ़ बिहार राज्य का हिस्सा हैं। साल 1931 में बिहार में कुल 26 जिलें थे जिसमें से आज के ओड़िसा के कुल नौ ज़िले थे, झारखंड के कुल सात ज़िले थे और दस जिलें बिहार के थे। बिहार के ये दस ज़िले थे: पटना, गया, शाहाबाद, मुंगेर, भागलपुर, पूर्णिया, दरभंगा, मुज़फ़्फ़रपुर, सारण और चंपारन। समय समय पर इन्हीं दस ज़िलों से अलग होकर बिहार में आज कुल ज़िलों की संख्या दस से बढ़कर 38 हो चुकी है। उस दौर में भागलपुर ज़िले की सीमा आज के जमुई से लेकर उत्तर में नेपाल तक फैली हुई थी। लेकिन फ़िलहाल बात सीमित रखते हैं बिहार के इन दस ज़िलों में अलग अलग जातियों कि जनसंख्या के ऊपर। यहाँ इस बात का ध्यान रखिएगा कि इंटर्नेट पर, सोशल मीडिया पर आपको कई जगहों पर साल 1931 की जनगणना के अनुसार बिहार की कुल आबादी और बिहार में अलग अलग जातियों के अनुपात लोग के आँकड़े शेयर किए जा रहे हैं लेकिन वो आँकड़े उस बिहार का है जिसमें बिहार, झारखंड और ओड़िसा तीनो एक साथ था।
भूमिहार-यादव-ब्राह्मण:
उदाहरण के लिए साल 1931 वाले बिहार में भूमिहार जाति की कुल आबादी 8 लाख 95 हज़ार 602 हुआ करती थी जो बिहार कि कुल जनसंख्या 4 करोड़ 23 लाख 29 हज़ार 583 का 2.11 प्रतिशत थी। लेकिन ब्रिटिश बिहार की कुल जनसंख्या 3 करोड़ 76 लाख 77 हज़ार 576 हुआ करती थी और इस तरह से ब्रिटिश बिहार में भूमिहारों का जनसंख्या अनुपात 2.38 प्रतिशत था जो कि ओड़िसा को अलग करने पर 2.91 % हो जाता था। लेकिन आज 2023 में जितना क्षेत्रफल बिहार में है उसमें साल 1931 में दस ज़िला था जो मैंने ऊपर बताया पटना, गया, शाहाबाद, मुंगेर, भागलपुर, पूर्णिया, दरभंगा, मुज़फ़्फ़रपुर, सारण और चंपारन और साल 1931 में इन दस ज़िलों की कुल आबादी 2 करोड़ 36 लाख 76 हज़ार 28 हुआ करती थी। इन दस ज़िलों की कुल आबादी में से 8 लाख 55 हज़ार 36 लोग भुमिहार थे यानी की साल 1931 की जनगणना के अनुसार बिहार में, आज वाले बिहार में दक्षिण में नवादा से उत्तर में मधुबनी और इधर पश्चिम में चंपारन से लेकर उत्तर में पूर्णियाँ तक वाले बिहार में भूमिहारों की कुल आबादी बिहार के कुल आबादी का 3.61 प्रतिशत था।
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संक्षेप में इसे एक बार और समझिए। 1931 वाले बिहार में यानी की जब बिहार, झारखंड और ओड़िसा एक था और उसमें ओड़िसा के कुछ स्वतंत्र रियासत भी थी तब के बिहार में भूमिहारों का जनसंख्या अनुपात 2.11 प्रतिशत था, लेकिन इससे रियासतों को अलग कर दे तो ब्रिटिश बिहार में भूमिहारों का अनुपात 2.38 प्रतिशत हो जाता है, और इसमें से भी अगर ओड़िसा को अलग कर दे तो भूमिहारों का अनुपात 2.91 प्रतिशत हो जाता है, और उसमें से झारखंड को भी निकाल दे तो आज के बिहार वाले क्षेत्रफल में भूमिहारों का अनुपात 3.61 प्रतिशत था। ये जो सोशल मीडिया पर 2.9 प्रतिशत वाला आँकड़ा वायरल हो रहा है ये वही 2.91 प्रतिशत वाला आँकड़ा है जब बिहार, झारखंड एक था।

अन्य जातियाँ:
इसी तरह से बिहार के अन्य जातियों का भी अध्ययन किया जा सकता है। उदाहरण के लिए साल 1931 वाले बिहार में यादवों की कुल आबादी 34 लाख 55 हज़ार 141 थी जो बिहार, झारखंड और ओड़िसा वाले बिहार की कुल जनसंख्या का 8.16% था और बिहार, ओड़िसा, झारखंड वाले ब्रिटिश बिहार की कुल जनसंख्या का 9.17 प्रतिशत था और आज वाले बिहार में यानी की 2022 वाले बिहार में यादवों की कुल आबादी 1931 में 30 लाख 9 हज़ार 499 थी जो कि उस समय के बिहार की कुल आबादी का 12.71 प्रतिशत हिस्सा था। और आज 2022 के जातीय गणना के अनुसार यादवों की आबादी 14.28 % हो गई है। यानी की पिछले 90 सालों के दौरान यादवों की आबाद 12.71% से बढ़कर 14.28 % हुई है। और ये खबर ग़लत है कि यादवों की आबादी 11% से बढ़कर 14.26 % हुई है।
इसी तरह से साल 1931 में ब्राह्मणों की पूरे बिहार में आबादी 4.96% था जो ब्रिटिश बिहार में 5.58% था और आज वाले बिहार के क्षेत्र में यानी की उन दस ज़िलों में 5.54% था। और अब 2022 के जातीय गणना के अनुसार बिहार में ब्राह्मणों की आबादी 3.66% है।
इस तरह से भुमिहर की आबादी बिहार में 3.61 % से घटकर 2.87 % हुई है, ब्राह्मण की आबादी 5.54% से घटकर 3.66% हुई है, राजपूत की आबादी 5.00% से घटकर 3.45% हुई है। आश्चर्य होगा लेकिन कुर्मी और धानुक दोनो का जनसंख्या अनुपात पिछले 90 सालों के दौरान घटा है। कुर्मी की आबादी 3.33% से घटकर 2.87% हो गई है, जबकि धानुक का जनसंख्या अनुपात 2.22% से घटकर 2.14% रह गया है। कोयरी या कुशवाहा की आबादी 4.24% से मामूली रूप से घटकर 4.21% हो गई है, दुसाध जाति की जनसंख्या में भी वृद्धि कुछ ज़्यादा नहीं है और इनकी आबादी 5.08% से बढ़कर 90सालों में 5.51% हुई है, चमार की 4.59 % से बढ़कर 5.25%, और मुसहर की 2.93% से बढ़कर 3.09%। इस तरह से सभी जातियों का तुलनात्मक अध्ययन आप टेबल संख्या 1 में देख सकते हैं।
जाति का अफ़वाह:
वैसे इन सबके बीच कुछ रोचक आँकड़े भी है। जैसे रजवार जाति का जनसंख्या अनुपात जितना 1931 में था उतना ही आज भी है, 0.27%। रजवार का जनसंख्या अनुपात 1931 में भी 0.27% था और आज भी 0.27% ही है। पूरे बिहार में सबसे ज़्यादा किसी जाती की आबादी के अनुपात में कमी आयी है तो वो है कायस्थ। कायस्थ का जनसंख्या अनुपात 1.31% से घटकर आधा से भी कम 0.60% हो गया है।
अंत में एक अफ़वाह पर भी दो टूक हो जाए। अफ़वाह उड़ाया जा रहा है कि बिहार सरकार द्वारा 2022 के जातीय गणना के जारी आँकड़े फ़र्ज़ी है, मनगढ़ंत है, और ये अफ़वाह उड़ाने वालों में ज़्यादातर उन्ही जाति के लोग हैं जिनका जनसंख्या अनुपात 1931 के मुक़ाबले कम हुआ है, घटा है, या उन जातियों के लोग हैं जिन्हें लगता था कि उनकी आबादी बहुत है लेकिन जब आँकड़ा सामने आया तो उनके सारे अंदाज़े धरे के धरे रह गए। हालाँकि इस अफ़वाह में एक पक्ष है तो हमें सोचने को मजबूर कर सकती है।
बिहार जातीय गणना 2022 के अनुसार पूरे बिहार में किन्नरों यानी की हिजड़ों या जिसे अंग्रेज़ी में ट्रांसजेंडर बोलते हैं उनकी पूरे बिहार में आबादी मात्र 825 है। क्या ये सम्भव है कि पूरे बिहार में मात्र 825 ही किन्नर हो। सम्भव तो नहीं लगता है क्यूँकि भारतीय जनगणना 2011 के अनुसार बिहार में कुल किन्नरों की आबादी 40,827 थी तो फिर बिहार जातीय जनगणना 2022 में उनकी आबादी मात्र 825 कैसे हो सकती है। हालाँकि यह कोई पहली बार नहीं है कि किन्नरों को अलग अलग गणना या सर्वेय में शामिल नहीं किया जाता है। साल 2019 में जारी किए गए मतदाता सूची बिहार में मात्र 2164 किन्नरों का नाम दर्ज किया गया था।

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