अमरीका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन (1861-1865) सम्भवतः दुनियाँ के पहले राजनेता थे जिन्होंने चुनावी राजनीति में लाभ के लिए अपनी दाढ़ी बढ़ाई थी। माना जाता है कि लिंकन को ये करने का सलाह एक 11 वर्ष की बच्ची ने पत्र के माध्यम से दिया था। उस बच्ची के अनुसार उस दौर की महिलाएँ बड़ी-दाढ़ी-मूँछ वाले मर्द को अधिक पसंद करते थे। लेकिन ऐसा नहीं है कि मानव सभ्यता में बड़ी दाढ़ी को हमेशा समाज ने सकारात्मक नज़र से देखा है। प्राचीन काल में दुनियाँ के लगभग सभी विद्वान बड़े दाढ़ी-मूँछ वाले थे।
दाढ़ी और इतिहास:
19वीं सदी का अंत होते होते बड़ी दाढ़ी को असभ्य, जंगली, मर्दाना, पितृसत्तात्मकता और उग्र विचार से जोड़ा जाने लगा। वहीं 19वीं सदी के के दौरान बड़ी दाढ़ी गम्भीरता, त्याग, बलिदान, मज़बूत, ताकतवर, मज़बूत नेतृत्व, इंटेलेक्ट का प्रतीक माना जाता था। यह सिर्फ़ संयोग नहीं है कि बड़ी दाढ़ी-मूँछ रखने वाले कार्ल मार्क्स भी लिंकन के दौर के ही थे और दाढ़ी-मूँछ नहीं रखने वाले आइंस्टाइन 20वीं सदी के थे।
दाढ़ी-मूँछ का साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद और पश्चिम सभ्यता द्वारा एशिया की सभ्यता पर आक्रमण का भी प्रतीक है। जब 19वीं सदी के दौरान पश्चिम सभ्यता ने एशिया को पूरी तरह अपना उपनिवेश बना लिया तो एशिया की संस्कृति के ख़िलाफ़ प्रचार के लिए दाढ़ी-मूँछ का भी इस्तेमाल किया गया। जापान में पश्चिम के ख़िलाफ़ वर्ष 1877 में हुए सातसूमा क्रांति के पीछे कई कारणों में से एक कारण यह भी था कि उस दौर में जापान में बड़े बाल वाले जपानियों का ज़बरदस्ती बाल काट दिया जा रहा था।
William Howard Taft (1909-1913) आख़री अमरीकी राष्ट्रपति थे जिनका मूँछ था और Benjamin Harrison (1889-1893) आख़री अमरीकी राष्ट्रपति थे जिनका दाढ़ी और मूँछ दोनो था। अब्राहम अमरीका के पहले राष्ट्रपति थे जिनका बड़ा दाढ़ी-मूँछ था। लिंकन से पहले के सभी राष्ट्रपति का दाढ़ी और मूँछ तो नहीं होता था लेकिन उसके पहले बड़े और उलझे बालों का दौर था। लिंकन के बाद दाढ़ी और बाल का प्रचलन तो बढ़ा लेकिन साथ में सुलझे और छोटे सर के बाल का दौर आया था।
दाढ़ी की वापसी:
20वीं सदी के दौरान दढ़ी-मूँछ को पहले मार्क्सवाद से और फिर आतंकवाद से जोड़ा गया और सम्भवतः यही कारण है कि साम्यवादी नेता भी दढ़ी-मूँछ रखना बंद कर दिए। वर्ष 2001 में अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में अल गोर की हार का प्रमुख कारण माना जाता है उनके द्वारा दढ़ी रखना।
पिछले एक दशक से दुनियाँ में राजनेताओं द्वारा दढ़ी-मूँछ बढ़ाने का प्रचलन फिर से बढ़ने लगा है। दुनियाँ में दढ़ी बनाने वाली ब्लेड और सलून की बिक्री कम हो रही है। कनाडा के प्रधानमंत्री Justin Trudeau सत्तर वर्षों के बाद कोई कनाडा के प्रधानमंत्री है जिनका दढ़ी है। इसी तरह ब्रिटिश लेबर पार्टी के Jeremy Corbyn वर्ष 1908 के बाद किसी ब्रिटिश राजनीतिक पार्टी के पहले नेता हैं जिन्होंने दढ़ी रखा है।
इसे भी पढ़े: Torch of Freedom: सिगरेट पीना भी कभी महिला मुक्ति का प्रतीक बना था

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 के कैबिनेट में 58 में से 18 मंत्रियों के दढ़ी थी और 2019 में भी 57 में से 18 की दढ़ी-मूँछ है। वर्तमान में 27 पुरुष कैबिनेट मंत्री में से 11 मंत्रियों के दाढ़ी और मूँछ दोनो हैं. भारत के 14 प्रधानमंत्रियों में से मात्र चार (नरेंद्र मोदी, मनमोहन सिंह, इंद्र कुमार गुजराल और चंद्रशेखर) के दढ़ी-मूँछ थे और उसमें से भी सफल सिर्फ़ मनमोहन सिंह हुए जो धार्मिक कारणों से दढ़ी रखते थे। इसी तरह आज़ाद हिंदुस्तान में सभी राष्ट्रपतियों में से मात्र दो के दढ़ी-मूँछ थे (ज्ञानी ज़ैल सिंह और ज़ाकिर हूसेन) और वो भी धार्मिक कारणों से ही दढ़ी-मूँछ रखते थे।
क्लीन सेभ गावस्कर-तेंदुलकर के दौर से दढ़ी-मूँछ वाले धोनी-कोहली का दौर हो या फ़िल्मों में सलमान से कबीर सिंह का दौर हो या फिर गांधी-नेहरू-राजीव से मोदी-राहुल का दौर हो सभी क्षेत्रों में दढ़ी-मूँछ लोगों और ख़ासकर यूवाओं की नई पसंद बनती जा रही है। दढ़ी-मूँछ एक मज़बूत, आक्रामक, और ग़ुस्सा के साथ ज़िम्मेदारी लेने वाले मर्द की नई पहचान के रूप में उभर रही है जिसे न सिर्फ़ लड़कियाँ-औरतें पसंद कर रही है बल्कि मर्द भी फिर वो चाहे चुनाव हो या प्रेम का रिश्ता। यह परिचायक है विश्व में बढ़ते पितृसत्तात्मकता, अधिनायकवाद, उग्रवाद, मर्दानगी, आदि का।

Hunt The Haunted के Facebook पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें (लिंक)