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अमित शाह जी का यह बिहार दौरा किन मायनों में इतिहास लिखने वाला है ?

5 नवम्बर 2023 को भारत के गृहमंत्री अमित शाह बिहार दौरा पर आ रहे हैं। पिछले एक सालों में अमित शाह जी का यह सातवाँ बिहार दौरा है, यानी कि हर दूसरे महीने अमित शाह बिहार दौरा पर पहुँच जाते हैं। अमित शाह जी का यह बिहार दौरा कई मायनों में ऐतिहासिक होगा। यह बिहार दौरा बिहार के इतिहास में या यूँ कहें कि पूरे देश के इतिहास में इस मायने में ऐतिहासिक होगा कि आज़ाद हिंदुस्तान के इतिहास में शायद ही कोई ऐसा गृहमंत्री होंगे जो एक साल में हिंदुस्तान के एक ही राज्य का सात बार दौरा किया हो।

इस लेख का यूटूब विडीओ: एक साल में अमित शाह के 6 बिहार दौरे की पूरी कहानी

इसके पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान भारत के इतिहास में किसी भी लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक 437 चुनावी रैली करने का रेकर्ड बना चुके थे। हर दौरे पर सभा को सम्बोधित करते हुए अमित शाह जी कुछ न कुछ झूठ बोल देते हैं और विपक्ष उस झूठ के पीछे पड़ जाती है।और मीडिया में अगले एक हफ़्ते तक उस दौरे की खबर चलते रहती है। जिस तरह 2014 के चुनाव के दौरान नेताओं द्वारा झूठ बोलना एक सोचा समझा प्रचार पद्धति और प्रचार तंत्र के रूप में उभरा अमित शाह उसी प्रचार तंत्र को मज़बूत कर रहे हैं।  

पहला बिहार दौरा:

23 सितम्बर 2022, बिहार में NDA सरकार गिरने के एक महीने के भीतर अमित शाह बिहार दौरा पर पूर्णियाँ और अररिया आते हैं। अमित शाह के बिहार दौरा के ठीक पहले PFI और बांग्लादेश घुशपैठ के साथ साथ जनसंख्या जिहाद का मुद्दा उछाल जाता है।

ये मुद्दे इसलिए उछाले गए क्यूँकि पूर्णियाँ और अररिया मुस्लिम बहुल आबादी वाला क्षेत्र होने के साथ साथ बांग्लादेश सीमा से नज़दीक है और अमित शाह का दौरा भी यहीं होना था इसलिए अमित शाह के दौरे के ठीक पहले इन क्षेत्रों को बदनाम करने के लिए और ख़ासकर इन क्षेत्रों के मुसलमानों को बदनाम करने के लिए PFI और बांग्लादेश घुशपैठ के साथ साथ जनसंख्या जिहाद का मुद्दा उछाल दिया गया था।

लेकिन मामला उलटा पड़ गया, अमित शाह के बिहार दौरा शुरू होने से पहले JDU ने इन तीनों मुद्दों पर एक के बाद एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स और बयान के सहारे भाजपा को बैकफूट पर धकेल दिया। जब कुछ बोलने को बचा नहीं तो अमित शाह बिहार दौरा के दौरान पूर्णियाँ में एयरपोर्ट बनाकर हवाई यात्रा शुरू कर आए। पूर्णियाँ में आज तक एयरपोर्ट नहीं बना है लेकिन बिहार में महगठबँधन आज तक अमित शाह के उस झूठ पर चुटकुले बनाते रहती है मीमस बनाते रहती है। 

ऐसा ही एक चुटकुला और बनने वाला था अप्रैल 2023 में, जब अमित शाह बिहार दौरा पर नवादा आते हैं। नवादा में आकर अमित शाह घोषणा कर देते हैं कि मोदी सरकार ने नवादा में परमाणु ताप बिजली केन्द्र खोलने का काम शुरू कर चुकी है। लेकिन मोदी सरकार के ही सरकारी दस्तावेज कुछ और कहते हैं।

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12 अगस्त 2021 को भाजपा के ही राज्यसभा सांसद सुशील मोदी द्वारा सांसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्हें बताया गया कि सरकार ने यानी की मोदी सरकार ने उस योजना को तात्कालिक तौर पर बंद कर दिया है। 14 दिसम्बर 2022 को फिर से जब लोक सभा में श्रीमती पूनम महाजन और देबाश्री चौधरी ने प्रधानमंत्री कार्यालय से देश में 21 प्रस्तावित नूक्लीअर पावर प्लांट के बारे में पूछा तो जवाब में नवादा के नूक्लीअर पावर प्लांट का कहीं कोई ज़िक्र नहीं था।

उससे पहले 29 जुलाई 2015 को भी जय प्रकाश नारायण यादव और राम देवी ने भी संसद में यह सवाल पूछा था कि क्या भारत सरकार नवादा में परमाणु बिजली संयंत्र बना रही है तो उसके जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय ने साफ इंकार कर दिया कि नवादा में परमाणु ताप बिजली घर बनाने की भारत सरकार की कोई भी योजना नहीं है। खुद मोदी सरकार के द्वारा तीन बार नवादा परमाणु ताप बिजली घर बनाने की किसी भी योजना की सम्भावना से इंकार करने के बावजूद अमित शाह जी इस साल अप्रैल में अपनी नवादा ज़नसभा में ये दावा कर देते हैं कि उनकी मोदी सरकार ने नवादा में परमाणु बिजली ताप घर बनाना शुरू कर दिया है।

दूसरा बिहार दौरा:

जब 2 अप्रैल 2023 को अमित शाह बिहार दौरा पर नवादा आए थे तो उस दौरे में उन्हें सासाराम भी जाना था लेकिन वो नहीं गए। बहाना यह बनाया गया कि चुकी सासाराम में दंगा हो रहा था और ज़िले में धारा 144 लगी हुई थी इसलिए अमित शाह का सासाराम दौरा रद्द कर दिया गया।

लेकिन बिहार के महगठबँधन के नेताओं का कहना था कि चुकी सासाराम में जनसभा के लिए भिड़ नहीं जुटी इसलिए अमित शाह सासाराम नहीं गए थे जबकि स्थानिए ज़िलाधिकारी मतलब DM का कहना था कि सासाराम में उन्होंने कभी धारा 144 लगाया ही नहीं था।दरअसल 30 मार्च को रामनवामी  के बाद सासाराम और बिहार शरीफ़ मे हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क गए थे जिसमें सर्वाधिक क्षति बिहार शरीफ़ में हुआ था जबकि सासाराम में कम प्रभावित था।  

तीसरा बिहार दौरा :

जो भाजपा और अमित शाह हर रैली की शुरुआत जय श्री राम के नारे से करते हैं वही अमित शाह मिथिला आकर जय श्री राम का नारा भूल गए। 16 सितम्बर 2023 को जब बिहार दौरा पर मिथिला के झंझारपुर आए अमित शाह जी का भाषण शुरू हुआ तो दो नारों के साथ शुरू हुआ। भारत माता की जय और सीता मैया कि जय। पूरे भाषण के दौरान अमित शाह जी ने भारत माता की जय के 5 बारे नारे लगवाए, वन्दे मातरम के तीन बार, सीता मैया की जय के दो बार, आख़री में जाते जाते जय सिया राम बोलकर निकल गए, बिना जय श्री राम बोले। जय श्री राम का नारा अमित शाह जी नहीं लगाए।

शायद उन्हें मालूम था कि सीता मैया की धरती मिथिला पर जय श्री राम का नारा नहीं चलेगा। अपने भाषण के अंत में अमित शाह जय शिया राम का नारा ज़रूर लागा दिए लेकिन जय श्री राम का नारा नहीं लगा पाए। भाजपा के किसी नेता का उत्तर प्रदेश में कोई भाषण बिना जय श्री राम के शुरू नहीं होता है और मिथिला में जय श्री राम का नाम एक बार भी नहीं लिया जाता है।

जय श्री राम बनाम सीता:

जगह बदलने पर भगवान राम के नारे को बदलने की यह व्यवस्था क्या ये सिद्ध करने के लिए काफ़ी नहीं है कि भाजपा के लिए जय श्री राम का नारा सिर्फ़ एक राजनीतिक हथकंडा है सत्ता तक पहुँचने का, जहां जय श्री राम के नारे में वोट मिलता है वहाँ जय श्री राम का नारा लगाया जाता है और जहां सीता मैया की जय बोलने से वोट मिल सके वहाँ जय श्री राम के नारे नहीं लगते हैं। 

वैसे अमित शाह जी का सभा सम्बोधित करने का एक स्टाइल है जो वो हर बार दोहराते हैं। माइक पकड़ते ही एक बार भारत माता की जय के नारे लगवाते हैं फिर लोगों को बोलेंगे कि क्या हुआ भाई झंझारपुर के लोगों, या पूर्णियाँ के लोगों, या नवादा के लोगों, या जहां भी जनसभा हो रही है वहाँ के लोगों, इतनी कम आवाज़ में नारा लगाओं, इतनी कम आवाज़ में काम नहीं चलेगा, फिर अमित शाह जी दो तीन बार नारे और लगवाते हैं और उसके बाद भाषण शुरू करते हैं।

पिछले साल पूर्णियाँ जनसभा के दौरान अमित शाह जी ने जनसभा में आए लोगों से सिर्फ़ नारे नहीं लगवाए बल्कि तालियाँ तक बजवाई, बोलबोल कर बजवाई,  और वो भी 11 बार। पिछले साल पूर्णियाँ जनसभा के बाद नीतीश सरकार के नेताओं ने अमित शाह को 11 बार लोगों से ताली बजवाने के लिए खूब ट्रोल किया था मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक।

उस पूर्णियाँ जनसभा के बाद अमित शाह बिहार दौरा पर अपनी जनसभा में आए लोगों से ताली बजवाना ही भूल गए। आख़री बार भी जब अमित शाह जी झंझारपुर आए थे तो लोगों से एक बार भी ताली नहीं बजवाया था और जब JP के गाँव सिताब दियारा गए थे तब भी एक भी ताली नहीं बजवाया गया था जबकि उस जनसभा में तो बिहार के साथ साथ UP के लोग भी आए थे, योगी जी भी आए थे। 

चौथा बिहार दौरा :

अमित शाह पिछले साल 11 अक्तूबर को JP का गाँव सिताब दियार जाते उससे पहले ही नीतीश कुमार सारा मजमा लूटकर चले गए। अमित शाह के सिताब दियार जाने के तीन दिन पहले ही 8 अक्तूबर को नीतीश कुमार सिताब दियारा जाकर JP के  गाँव में एक पूल और एक हॉस्पिटल की घोषणा भी कर दिया और जिस दिन अमित शाह सिताब दियार जाने वाले थे उस दिन 11 अक्तूबर 2022 को नीतीश कुमार नागालैंड जाकर जे॰पी॰ की जयंती मनाने लगे। मतलब नीतीश कुमार के सामने एक बार फिर से अमित शाह का बिहार दौरा फीका पड़ गया।

अमित शाह जी का सिताब दियारा कितना फीका था इसका आप अंदाज़ा सिर्फ़ इस बात से लगा सकते हैं कि अमित शाह जी द्वारा पिछले एक सालों के दौरान बिहार में किए गए सभी छह जनसभाओं में से सबसे छोटा भाषण उन्होंने सिताब दियारा में ही दिया था जो चौदह मिनट भी नहीं चला था। अमित शाह जी का लखीसराय भाषण 25 मिनट का चला, नवादा भाषण 22 मिनट चला, पूर्णियाँ भाषण 30 मिनट, और बाल्मीकीनगर का भाषण 24 मिनट चला था और झंझारपुर भाषण तीस मिनट ही चला था।

पांचवा बिहार दौरा : 

झंझारपुर सभा एक और मामले में यादगार रहा। जब अमित शाह जी झंझारपुर में सभा कर रहे थे ठीक उसी समय अंतरराष्ट्रीय मैथिल परिषद, मिथिला राज्य निर्माण सेना, संयुक्त मिथिला राज्य संघर्ष समिति  और ‘Mithila Student Union‘ के लोग पिछले चार दिनों से दरभंगा में AIIMS के निर्माण के लिए भूख हड़ताल कर रहे थे। अमित शाह जी इन भूख हड़तालियों से मिलने तो नहीं ही गए लेकिन उसके ऊपर से यह भी ऐलान कर दिया कि दरभंगा AIIMS का अब निर्माण भी नहीं होगा। ये एक तरह का भूख हड़तालियों के मुहँ पर तमाचा था।

अमित शाह जी ने कहा कि अगर नीतीश बाबू AIIMS के निर्माण के लिए अच्छी ज़मीन दे देते, मतलब गड्ढे वाली ज़मीन नहीं देते तो AIIMS बन चुका होता लेकिन नीतीश बाबू ने ज़मीन नहीं दिया तो अब नहीं बन सकता है अब तो तभी बनेगा जब भाजपा बिहार में सरकार बनाएगी। अब चुकी नीतीश सरकार गड्ढे वाली ज़मीन दे चुकी है और केंद्र सरकार गड्ढा भरकर AIIMS बनाएगी नहीं तो पता नहीं दरभंगा में AIIMS कब बनेगा।

दरभंगा में तो AIIMS अब नहीं बनेगा लेकिन लखीसराय की जनसभा में अमित शाह जी ने ऐलान कर दिया कि मुंगेर में एंजिनीरिंग कॉलेज उनकी ही सरकार ने मोदी सरकार ने बनवाया था लेकिन अमित शाह के भाषण ख़त्म होने के एक घंटे के भीतर JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह जो मुंगेर क्षेत्र से सांसद भी हैं उन्होंने ये दावा कर दिया कि मुंगेर का वो एंजिनीरिंग कॉलेज बिहार सरकार ने साथ निश्चय योजना के तहत बनवाया था और ललन सिंह ने अमित शाह को चुनौती दे दिया कि अगर केंद्र सरकार ने मुंगेर के उस एंजिनीरिंग कॉलेज के निर्माण में एक भी रुपए दिया है तो प्रमाण दे। मतलब अमित शाह का झूठ फिर पकड़ा गया।

बिहार दौरा से सवाल:  

अब सवाल उठता है कि अमित शाह को जब पता है कि JDU या RJD बिहार में उनका झूठ पकड़ लेती है तो फिर वो इतना झूठ बोलते क्यूँ है? क्या उन्हें सच में मालूम नहीं था कि पूर्णियाँ में एयरपोर्ट नहीं बना था, नवादा में नूक्लीअर पावर प्लांट नहीं बना था या मुंगेर का एंजिनीर कॉलेज बिहार सरकार ने बनवाया था न कि केंद्र सरकार ने। दरअसल झूठ बोलना एक कैम्पेन स्ट्रेटेजी होती है, प्रचार करने का एक तंत्र होता है जिसमें जानबूझकर झूठ बोला जाता है।

पहले मोदी जी ऐसा कर रहे थे और अब अमित शाह जी भी वैसा ही कर रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार दुनियाँ में झूठ सच की तुलना में छह गुना अधिक तेज़ी से फैलता है, झूठ ज़्यादा ग्लैमरस होता है, ज़्यादा अट्रैक्टिव होता है, और इसी लिए पिछले कुछ सालों से झूठ बोलना एक प्रचार तंत्र बन गया है और इस झूठ वाले प्रचार तंत्र के पिता मतलब जनक हिट्लर के प्रचारक गोबेल्स थे। 

अमित शाह जी पिछले एक साल से बिहार में इतना जनसभा कर रहे हैं इतना झूठ बोल रहे हैं और उसके बावजूद अगर आने वाले चुनाव में बिहार में भाजपा को अच्छा परिणाम नहीं मिलता है तो दोष किसे दिया जाएगा? बिहार की जनता को या फिर बिहार भाजपा द्वारा लखीसराय के गांधी मैदान में अमित शाह जी का जनसभा करवाने के निर्णय करने वाले लोगों को? क्यूँकि अभी तक बिहार के इतिहास जिसने भी लखीसराय के गांधी मैदान में जनसभा किया है वो बिहार में अगला चुनाव हारा है।

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साल 1977 में इंदिरा गांधी भारतीय संसद की ब्यूटी क्वीन तारकेश्वरी सिन्हा के लिए चुनाव प्रचार करने लखीसराय के इस गांधी मैदान में जनसभा करने आइ और तारकेश्वरी सिन्हा चुनाव हार गई। 1980 में चौधरी चरण सिंह इस मैदान में श्याम नंदन मिश्र के लिए चुनावी जनसभा करने आए और इस बार श्यामनंदन मिश्रा चुनाव हार गए।

ये वही श्याम नंदन मिश्र थे जिन्होंने पिछले चुनाव में 1977 में तारकेश्वरी सिन्हा को हराया था जिनके लिए इंदिरा गांधी लखीसराय के इसी मैदान में चुनावी सभा करने बिहार दौरा पर आए थे। इसके बाद साल 1984 के चुनाव कांग्रेस की धाकड कृष्णा शाही लखीसराय के इस गांधी मैदान में एक भी जनसभा नहीं करती है और चुनाव जीत जाती है लेकिन 1989 के चुनाव में कृष्णा शाही लखीसराय के इसी गांधी मैदान में राजीव गांधी को बिहार दौरा पर बुला लिए, उस चुनाव में राजीव गांधी को प्रधानमंत्री की गद्दी गवानी पड़ी और कृष्णा शाही को अपनी सांसदी गवानी पड़ी, दोनो चुनाव हार गए।

1998 में फिर से सोनियाँ गांधी और राहुल गांधी यहाँ चुनाव प्रचार करने इसी मैदान में बिहार दौरा पर आए और चुनाव हार गए, 2014 में नीतीश कुमार इसी मैदान में ललन सिंह के लिए वोट माँगने आए और ललन सिंह चुनाव हार गए। अब 29 जून 2023 को बिहार भाजपा ने अमित शाह की जनसभा लखीसराय के उसी अशुभ गांधी मैदान में करवा दिया तो देखते हैं 2024 में अमित शाह की का यह बिहार दौरान क्या गुल खिलाता है।

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