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अम्बेडकर के क़ानून मंत्री से इस्तीफ़े के लिए कितने ज़िम्मेदार थे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ?

बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा भारतीय संविधान सभा में पेश किए गए ‘हिंदू कोड बिल’ का विरोध करते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था, “औरतों को तलाक़ का अधिकार देने किसी भी क़ीमत पर मंज़ूर नहीं किया जाएगा।” अंततः ‘हिंदू कोड बिल’ संविधान सभा में पारित नहीं हो पाया जिसके विरोध में अम्बेडकर ने नेहरू मंत्रिमंडल से अपना त्यागपत्र दे दिया। 

हिंदू कोड बिल के सवाल पर अम्बेडकर और भारतीय राजनीति के हिंदुत्ववादी ताक़तों के बीच चली बहस को समझने का एक महत्वपूर्ण मध्यम इस मुद्दे पर 1950 के दशक के दौरान अलग अलग पत्र-पत्रिकाओं और अख़बारों में छापे कार्टून है। यह ध्यान देने वाली बात है कि बाबा साहेब के जीवन के दौरान उनपर छपने वाली सर्वाधिक कार्टूनो का सम्बंध सीधे-सीधे हिंदू कोड बिल से ही है।

‘हिंदू कोड बिल’, सुनने में ऐसा लगता है जैसे कोई हिंदू धर्म से सम्बंधित क़ानूनी प्रस्ताव होगा। पर वास्तव में ‘हिंदू कोड बिल’ भारतीय महिलाओं को उनका संवैधानिक हक़ दिलाने के लिए बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर द्वारा किया गया सतत प्रयास था। इस क़ानून के तहत हिंदू महिलाओं को तलाक़ लेने का अधिकार के साथ सम्पत्ति का अधिकार, बहुविवाह (एक से अधिक महिलाओं के साथ विवाह) पर रोक, और विवाह की उम्र बढ़ाने का सुझाव दिया गया था। 

Ambedkar

अम्बेडकर, मुखर्जी और हिंदू कोड बिल:

संविधान सभा में श्यामा प्रसाद मुखर्जी समेत न सिर्फ़ संघ के अन्य नेताओं ने हिंदू कोड बिल का विरोध किया बल्कि इसका विरोध करने वालों की सूची में राजेंद्र प्रसाद और सरदार बल्लभ भाई पटेल जैसे लोग भी थे। हालाँकि इस विरोध में श्यामा प्रसाद मुखर्जी को छोड़कर बाक़ी किसी अन्य नेता ने डॉक्टर अम्बेडकर का सीधे विरोध नहीं किया था और न ही अम्बेडकर के ऊपर कोई आरोप लगाया था। 

इसे भी पढ़े: चित्रों में कहानी-8: अम्बेडकर के जीवन से 20 ऐतिहासिक कार्टून

संविधान सभा में महिलाओं के विवाह के अधिकार पर बोलते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी कहते हैं कि अमरीका में भी अमरीकी के अधिकतर राज्यों में श्वेत और नीग्रो के बीच शादी करना ग़ैर-क़ानूनी है। इसी तरह अमरीका के कुछ राज्यों में अमरीकी और चीनी या मंगोलियन के बीच शादी गैर-क़ानूनी है। मुखर्जी का सलाह था कि चुकी शादी-विवाह संविधान की सामवर्ति सूची में है इसलिए इससे सम्बंधित क़ानून बनाने का अधिकार राज्यों के ऊपर छोड़ दिया जाना चाहिए जो अपने अपने राज्य की जनभावना के अनुसार फ़ैसले लेगी। मुखर्जी का मानना था कि चुकी ज़्यादातर भारतीय वर्तमान महिला सम्बन्धी अधिकारों से संतुष्ठ है इसलिए इसमें कोई ग़ैर-ज़रूरी बदलाव नहीं किया जाना चाहिए। 

हिंदू कोड बिल तैयार करने के लिए डॉक्टर अम्बेडकर द्वारा की गई मेहनत पर तंज कसते हुए मुखर्जी कहते हैं, “आपकी मेहनत के लिए कहें तो आपको उपाधि दे दिया जाए लेकिन अगर आप इसे भारतीयों पर ज़बरदस्ती थोपना चाहते हैं तो आप भारत की जनता के साथ अन्याय कर रहे हैं। देश में चुनाव होने वाला है जनता आपको हक़ीक़त बता देगी।” श्यामा प्रसाद मुखर्जी हिंदू कोड बिल को वैकल्पिक क़ानून बनाए रखना चाहते थे। अर्थात् जो जनता इस क़ानून के तहत घरेलू निर्णय लेना चाहती थी वो इसके लिए स्वतंत्र थे लेकिन जो इस क़ानून का व्यक्तिगत तौर पर इस्तेमाल करना चाहते थे वे इस क़ानून का इस्तेमाल कर सकते थे। 

अम्बेडकर
स्त्रोत: The Tribune, तिथि: 18 मार्च 1949, शीर्षक: ‘The Dead Weights’, कार्टूनिस्ट: B Verma.

अम्बेडकर और भाजपा:

महिलाओं से सम्बंधित क़ानूनों का हिंदू कट्टरपंथी द्वारा विरोध करने का प्रचलन आगे भी जारी रहा। वर्ष 1987 में ‘Commission for Sati (Prevention) Act’ का भी राजस्थान के कई भाजपा नेताओं ने विरोध किया था जिसके तहत सती व्यवस्था का गुणगान करने वालों के ऊपर भी आपराधिक मुक़दमा दायर करने का प्रावधान लाया गया था।  

अम्बेडकर के विचारों को भारतीय राजनीति में सम्माजनक स्थान दो दशक पहले तक नहीं मिल पाया था। वर्ष 1997 में संघ नेता अरुण शौरी ने एक पुस्तक लिखी जिसका शीर्षक था, “गलग भगवान की पूजा: अम्बेडकर और तथ्य जो मिटा दिए गए।” इस पुस्तक में अम्बेडकर ने कैसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों का साथ दिया था इसका विस्तृत वर्णन किया गया था। हालाँकि वर्ष 2014 में जब भाजपा केंद्र में सत्ता में है तो RSS की सुरुचि प्रकाशन से तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई जिनका शीर्षक था: ‘मनुस्मृति और डॉक्टर अम्बेडकर’; और ‘प्रखर राष्ट्र भक्त डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर।’

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Raavan Kumar
Raavan Kumar
Raavan Kumar is based in Uttarakhand and do business only in writing.
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