वर्ष 1929 में भारतीय ब्रिटिश सेना में करवाए गए सर्वेक्षण में यह पाया गया कि बिहार और उड़ीसा का समग्र रूप से भारतीय ब्रिटिश आर्मी में मात्र 0.2 प्रतिशत योगदान था जबकि उस समय इन दोनो राज्यों की जनसंख्या पूरे हिंदुस्तान की जनसंख्या का 10.7 प्रतिशत था। भारतीय सेना के बदलते स्वरूप के लिए एक महत्वपूर्ण किताब है Steven I. Wilkinson द्वारा लिखी, और 2015 में “Army and Nation – The Military and Indian Democracy since Independence” के शीर्षक से छपी किताब।
सेना में बिहारियों के इस उपरोक्त असंतुलन का मुख्य कारण वर्ष 1857 में हुए विद्रोह के दौरान बिहारी सैनिकों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध उच्च भागेदारी बताया जाता है। 1857 की क्रांति के बाद बिहार, बंगाल और ओड़िसा के निवासियों को ब्रिटिश आर्मी में शामिल होने से प्रतिबंधित कर दिया था। सम्भवतः यही कारण था कि वर्ष 1929 में बंगाल राज्य से ब्रिटिश आर्मी में एक भी व्यक्ति नहीं था। हिंदुस्तान की आज़ादी के तुरंत बाद बिहार का भारतीय सेना में योगदान में भारी उछाल देखा गया।

वर्ष 1965-66 के दौरान भारतीय सैनिकों के किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार भारतीय सेना में बिहार का योगदान बढ़कर 5.4 प्रतिशत हो गया और यह अनुपात वर्ष 1996-97 में बढ़कर 7 प्रतिशत चला गया। अर्थात् आज़ादी के बाद से ही भारतीय सेना में बिहारियों का अनुपात लगातार बढ़ रहा है जो आज तक जारी है।
दूसरी तरफ़ वर्ष 1929 के सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि भारतीय ब्रिटिश आर्मी में पंजाबीयों की भागेदारी 54.4 प्रतिशत था जबकि पंजाब की जनसंख्या पूरे हिंदुस्तान की जनसंख्या का मात्र 6.5 प्रतिशत हिस्सा ही था।

वर्तमान में भारतीय सेना :
इसके विपरीत आज इंडीयन आर्मी में बिहार की भागेदारी उसकी जनसंख्या अनुपात के लगभग बराबर हो गई है। 15 मार्च 2021 को केंद्र सरकार द्वारा राज्य सभा में भेजी गई जानकारी के अनुसार देश भर में कुल 13 लाख 40 हज़ार जवान हैं जिसमें से अकेले बिहार में 01 लाख 04 हज़ार 539 जवान हैं। अर्थात् पूरे हिंदुस्तान के कुल जवानों का 7.80 प्रतिशत हिस्सा बिहार से आते है जबकि बिहार की जनसंख्या हिंदुस्तान की कुल जनसंख्या का 8.60 प्रतिशत है।

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दूसरी तरफ़ जो पंजाब आज़ादी तक हिंदुस्तान की कुल सेना का लगभग आधा हिस्सा हुआ करता था उसका अनुपात आज घटकर मात्र 6.97 प्रतिशत रह गया है। हिंदुस्तान की सेना में योगदान करने के मामले में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है जबकि बिहार दूसरे और पंजाब पाँचवें स्थान पर है। हालाँकि सिर्फ़ थल सेना के मामले में पंजाब दूसरे स्थान पर है
दूसरी तरफ़ बिहार से हटकर अलग हुए पृथक राज्य झारखंड का भारतीय सेना में योगदान मात्र 1.6 प्रतिशत है जबकि झारखंड की जनसंख्या पूरे हिंदुस्तान की जनसंख्या का 3.5 प्रतिशत है। दूसरी तरफ़ स्थानो पर यह खबर छप रही है कि भारतीय सेना में अनुपातिक योगदान के मामले में पंजाब आज भी दूसरे स्थान पर है जो कि अर्धसत्य है। वास्तविक में पंजाब सिर्फ़ थल सेना के मामले में दूसरे स्थान पर है जबकि अगर तीनों सेनाओं का समग्र रूप से आँकलन किया जाएगा तो बिहार दूसरे स्थान पर है।
ऐसे माहौल में अगर अग्निवीर के ख़िलाफ़ सर्वाधिक तीव्र आंदोलन बिहार और उत्तर प्रदेश में दिख रही है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्यूँकि पिछले कुछ दशकों से भारतीय सैनिकों में भर्ती होने के प्रति रुझान सर्वाधिक बिहार और उत्तर प्रदेश में ही देखा गया है।
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