HomeHimalayasउत्तरकाशी भूकम्प-1991 के वो रहस्य जो आज तक नहीं सुलझ पाए !!

उत्तरकाशी भूकम्प-1991 के वो रहस्य जो आज तक नहीं सुलझ पाए !!

दावा किया जाता है कि वर्ष 1991 में उत्तरकाशी में आया भूकम्प, भूकम्प नहीं बल्कि पृथ्वी के पास एक उल्कपिंड और उपग्रह के टकराने से पैदा हुई कम्पन का नतीजा था। यह भूकम्प 20 अक्तूबर 1991 की रात 2 बजकर 53 मिनट और 16 सेकंड पर आयी थी। उत्तरकाशी भूकम्प के दौरान कई ऐसी घटनाएँ हुई जो इसके भूकम्प होने पर गहरे सवाल उठाते हैं। इनमे से कुछ महत्वपूर्ण सवाल निम्न है:

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1991 भूकम्प,
चित्र: माहीडांडा स्थित ITBP कैम्पस के मकान का टूटा छत का हिस्सा। अक्सर भूकम्प में मकान का निचला हिस्सा अधिक छतिग्रस्त होता है। स्त्रोत: EERI Special Earthquake Report

1991 के सवाल:

  1. अक्सर भूकम्प में कभी तेज आवाज़ नहीं होता है लेकिन उत्तरकाशी भूकम्प के कुछ सेकंड पहले बहुत तेज गड़गड़ाहट की आवाज़ आयी थी जिसे देहरादून तक सुना गया था।
  2. उत्तरकाशी भूकम्प के दौरान देहरादून तक पहाड़ से तेज प्रकाश आयी और देहरादून तक का तापमान बढ़ गया था जो देहरादून के स्थानीय लोगों ने देखा और महसूस किया था।
  3. उत्तरकाशी क्षेत्र में भूकम्प के दौरान पुल, पुलिया, बिजली के खंभे आदि बीच से मूड गए थे जबकि किसी भूकम्प के दौरान ये ज़मीन में धँस जाते हैं या गिर जाते हैं।
  4. सड़क और घरों में आयी दरारें भी बिलकुल अलग थी जो अक्सर भूकम्प के दौरान नहीं होती है। जिस तीव्रता के साथ यह भूकम्प आया था घरों और सड़कों पर दरारें उस तीव्रता के अनुसार नहीं आया था।
  5. उत्तरकाशी में ज़्यादातर पारम्परिक मकान प्रबलित कंक्रीट से बने तीन या चार तल्ले तक का होता है लेकिन 1991 के इस भूकम्प के दौरान बहुत कम मकान पूरी तरह छतिग्रस्त हुए। इन मकानों में सिर्फ़ दरारें आयी।
  6. अमेरिका की प्रतिष्ठित अंतरिक्ष विज्ञान संस्था नासा ने उत्तरकाशी भूकम्प से पहले दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को उल्कपिंड और एक उपग्रह के पृथ्वी के पास टकराने की सम्भावना ज़ाहिर कर चुकी थी।
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चित्र: मनेरी हायडल प्रोजेक्ट कॉलोनी के मकान का टूटा ऊपरी हिस्सा। मकान के छत और खिड़कियों के आस पास का हिस्सा अधिक आवाज़ के कारण अधिक छतिग्रस्त अधिक होता है। स्त्रोत: EERI Special Earthquake Report

रहस्य की पड़ताल:

1991 का यह भूकम्प इतना रहस्यमयी था कि भूकम्प के तुरंत बाद देश और दुनियाँ के कई शोध संस्थाओं से वैज्ञानिक और विशेषज्ञ इसपर शोध करने और रिपोर्ट बनाने आने लगे। अमरीका की प्रतिष्ठित नैशनल जीआग्रफ़ी डेटा सेंटर, बेल्जियम की Centre for Research on the Epidemiology of Disasters‘,  International Seismological Centre, और हिंदुस्तान की IIT कानपुर व National Information Centre of Earthquake Engineering, इनमे से प्रमुख संस्थाएँ थी। इन सभी संस्थाओं ने भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भूकम्प से सम्बंधित दिए गए आँकड़ों को झूठा बताया।

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सरकार की नज़र में 1991 में उत्तरकाशी में आए इस भूकम्प के कारण 768 लोगों की जाने गई, 5066 लोग घायल हुए और लगभग 3096 मवेशी लापता हो गए। अमेरिका की नैशनल जीआग्रफ़ी डेटा सेंटर जैसे कुछ अन्य स्वतंत्र सर्वेक्षण में लोगों के हताहत होने की संख्या दो हज़ार से उपर बताया गया। कानपुर द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार इस भूकम्प से 1294 गाँव के 42400 घर में रहने वाले उत्तराखंड के लगभग 3,00,700 लोग प्रभावित हुए।

वर्ष 1991 का यह भूकम्प उत्तराखंड के इतिहास में सर्वाधिक ख़तरनाक और आपदा वाला भूकम्प माना जाता है। इसके बाद वर्ष 1999 में चमोली ज़िले में भी भूकम्प आया लेकिन इसका प्रभाव उत्तरकाशी के भूकम्प से बहुत कम था।

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चित्र: उत्तरकाशी भूकम्प इतना रहस्यमयी था कि पूरी दुनियाँ से वैज्ञानिक और विशेषज्ञ इसका अध्ययन करने आए थे। स्त्रोत: The Weather Network

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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2 COMMENTS

  1. यह सच है कि जब यह भूकंप (या इसे जैसे भी परिभाषित करें ) आया था तब अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ में ऐसी आवाज़ /शोर सुना गया था जो सामान्यतया भूकंप आने पर नहीं सुनाई देता। उस समय केवल दूरदर्शन एकमात्र चैनल था जिसने जल्दी में इसका केंद्र अगोड़ा के स्थान पर अल्मोड़ा प्रसारित कर दिया था ,इसकी तीव्रता भी बता दी थी किस विश्वसनीय जानकारी पर यह समाचार आधारित थे ? क्या यह भूकंप ही था या कोई खगोलीय घटना ? कह नहीं सकते। लेख में उठाए गए सवाल संदेह तो पैदा करते हैं।

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