वर्ष 1814 में ही अंग्रेजों ने गोरखा को हराकर देहरादून (दून) पर क़ब्ज़ा कर लिया था लेकिन देहरादून को अलग ज़िले का दर्जा पाने के लिए वर्ष 1871 तक इंतज़ार करना पड़ा जब अंततः देहरादून को पूर्ण ज़िले का दर्जा मिला। इस हिसाब से देहरादून ज़िला इस वर्ष 2021 में पूरे 150 वर्ष का हो गया है। लेकिन ज़िले के वेब्सायट तक पर इससे सम्बंधित कोई जानकारी नहीं है।
वर्ष 1871 से पहले देहरादून जिला सहारनपुर ज़िले का हिस्सा था। वर्ष 1822 से पहले यहाँ पर अंग्रेजों का अप्रत्यक्ष शासन हुआ करता था जिसमें स्थानीय ज़मींदार और दून के गुरुद्वारा के पुजारी स्थानीय प्रशासन व्यवस्था देखते थे। फ़रवरी 1823 में पहली बार जब एफ जे शोरे को दून-जौनसार भाबर और सहारनपुर का समग्र मजिस्ट्रेट बनाकर कर भेजा गया, तब देहरादून पर अंग्रेजों का प्रत्यक्ष शासन प्रारम्भ हुआ। एफ जे शोरे जब अपना कार्यभार लेने दून आए तो उन्हें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उदाहरण के तौर पर उस समय दून घाटी में पानी की क़िल्लत थी, पक्की सड़कें न के बराबर थी और सबसे महत्वपूर्ण यह कि घाटी में डाकुओं का आतंक था।

वर्ष 1823 में में जब देहरादून पर अंग्रेजों का प्रत्यक्ष शासन शुरू हुआ तो दून घाटी की कुल आबादी मात्र 17 हज़ार थी। जब एफ जे शोरे को दून-जौनसार भाबर और सहारनपुर का समग्र मजिस्ट्रेट बनाकर कर भेजा गया तो एक तरफ़ रानी धुन कौर विद्रोह पर उतारू थी वहीं कलुआ, कौर और भोरा का घाटी में आतंक था। रानी के विद्रोह की मंशा को तो आसानी से ख़त्म कर दिया गया पर ये तीनो डाकू पूरे क्षेत्र से हफ्ता वसूलते रहे और लोगों को लूटते रहे। अंततः वर्ष 1928 आते आते घाटी में तीनो डाकुओं के आतंक पर अंकुश लगाने में सफलता मिली।
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अपने कार्यकाल के दौरान एफ जे शोरे ने दून घाटी में कई नहर बनवाए, लगभग 39 मिल पक्की सड़क भी बनवाई और कई नई पुलिस चौकियाँ भी बनवाई। अंग्रेजों के दौर में देहरादून, उत्तर प्रदेश (यूनाइटेड प्राविन्स) का सर्वाधिक खुशहाल ज़िलों में से एक था जहां अंग्रेजों ने हर तरह की सुविधा उपलब्ध करवाई। उत्तराखंड का प्रसिद्ध शहर और पर्यटन नगरी ‘मसूरी’ शहर की स्थापना का श्रेय भी एफ जे शोरे महाशय को ही जाता है।
“देहरादून 1876 से पहले मेरठ और सहारनपुर ज़िले का हिस्सा था”
दून कभी भी गढ़वाल कमिशनरी का हिस्सा नहीं था। वर्ष 1825 में देहरादून को कुमाऊँ कमिशनरी का हिस्सा बनाया गया लेकिन कुछ ही वर्षों के बाद दून को फिर से मेरठ कमिशनरी का हिस्सा बना दिया गया। इस दौरान देहरादून ज़िले का पुलिस और फ़ौजदारी अदालत सहारनपुर में लगता था और दिवानी अदालत मेरठ में लगता था।
आम धारणा के विपरीत दून हिंदुस्तान की आज़ादी के बाद तक कुमाऊँ या मेरठ कमिशनरी का हिस्सा रहा न कि गढ़वाल कमिशनरी का। दून को गढ़वाल कमिशनरी का हिस्सा आज़ादी के बाद पहली बार 1970 के दशक में बनाया गया। इस दौरान दून से लेकर मसूरी तक का क्षेत्र शिक्षा और बुद्धिजीवियों व लेखकों के निवास का केंद्र बनकर उभरा। आज भी रैस्किन बॉंड जैसे प्रसिद्द्ध लेखक मसूरी शहर में ही रहते हैं।
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