HomeHimalayas‘घास-घसियारी’: पहाड़ी कहावतों के आइने से

‘घास-घसियारी’: पहाड़ी कहावतों के आइने से

फ़रवरी 2021 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पहाड़ में घास (चारा) समस्या को हल करने के लिए ‘घसियारी कल्याण योजना’ की घोषणा किया जिसका सुभारंभ गृह मंत्री अमित शाह ने अक्तूबर 2021 में किया। पर देहरादून या दिल्ली में बैठी पहाड़ों की सरकार क्या पहाड़ों की ‘घास-घसियारी’ संस्कृति को समझती भी है?

पहाड़ में घास और घास काटकर लाने वाली महिलाओं (घसियारी) से सम्बंधित कई कहावतें कालांतर से ही प्रचलित है जो पहाड़ की संस्कृति और इतिहास का घास व घसियारी से गहरे लगाव को वर्णित करती है। घास-घसियारी से सम्बंधित कहावतों में से कुछ कहावतें निनमलिखित है: 

  1. जो तृण हर सोकंचनहर जो कंचन हर सो प्राणहर (One who steals grass will steal gold, and one who steals gold will commit murder)

उपरोक्त पहाड़ी कहावत से यह स्पष्ट होता है कि पहाड़ों में घास इतना क़ीमती होता है की घास के चोर को उन चोरों की श्रेणी में रखा जाता हैं जो सोना भी चुराते हैं। घास की चोरियाँ पहाड़ों में अक्सर शर्दी के मौसम के दौरान होती है। नीचे लिखा कहावत शर्दी के मौसम के दौरान घास के उसी महत्व को दर्शाता है। 

  1. रिण मिलिजा तिन निमिल (One can get a debt but not grass in the cold season)

सर्दी के मौसम के दौरान पहाड़ में घास इतना क़ीमती हो जाता है कि आपको धन का क़र्ज़ तो मिल सकता है लेकिन क़र्ज़ पर घस नहीं। उच्च हिमालय के पहाड़ों में शर्दी के मौसम के दौरान पहाड़ सफ़ेद बर्फ़ की चादर से ढक जाती है और उस बर्फ़ की चादर के नीचे पहाड़ के घस भी ढक जाते हैं। ठंड और ढके हुए घस की दोहरी मार से बचने के लिए पहाड़ के घरों में बर्फ़ गिरने से पहले युद्ध स्तर पर ताबड़तोड़ जंगल से लाकर घस संग्रहित-समेटे जाते हैं। 

  1. पसकि रस्यारि सौण कि घास्यारि (A cook for the month of Pusa (Jan) and a grass cutter for the month of Sauna (July)

घास समेटने/संग्रहित करने से सम्बंधी उपरोक्त यह कहावत दर्शता है कि सावन (वर्षा) के मौसम में घसियारी का काम बहुत आसान होता है क्यूँकि इस मौसम के दौरान पहाड़ चारों तरफ़ हरा भरा हो जाता है और घसियारी को चारे के लिए अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती है। पहाड़ में अन्य कामों की तरह इस काम (चारा संग्रहण) की भी ज़िम्मेदारी भी घर की महिलाओं के पीठ पर गिरती है। इसलिए चारा से सम्बंधित कई पहाड़ी कहावतों में बेटी और घस का ज़िक्र एक साथ किया गया है।  

चित्र: चमोली जिले के वाण गाँव में घास काटकर लौटती एक पहाड़न महिला।

घास और पहाड़न:

  1. गोरू दिनो खड्यंत नौनि दिनि नज़्यांत (cow should be sold to those who have plenty of grass and grazing ground, and daughters given to those who have much grain, otherwise the cows will suffer and their daughter starve)

इधर उपरोक्त पहाड़ी कहावत ये कहता है कि घर की बेटी उस घर में मत देना जिस घर में पर्याप्त अनाज नहीं हो और घर की गाय उस घर में मत देना जिस घर में पर्याप्त घास नहीं हो। ये कहावत दर्शता है की पहाड़ी पशुपालन के लिए घास का कितना महत्व हुआ करता था। और हो भी क्यूँ नहीं। जिस पहाड़ वर्ष का आधा समय (शर्दी का मौसम) बर्फ़ से ढका हो वहाँ पशु क्या खाएगा अगर घर में पर्याप्त चारा का संग्रहण ही नहीं हो। एक पहाड़ी कहावत के अनुसार एक नए गाय को घर में लाने के लिए कम से कम 9 पूला (बंडल) घास ज़रूरी है। 

  1. नौला गोरू का नो पूला घास (Nine bundles of grass for a new cow) (great care taken of any thing newly obtained).

पहाड़ों में घास का इतना अधिक महत्व होता है कि इसका इस्तेमाल कई कहावतों में अलंकार के रूप में क़ीमती वस्तुओं के महत्व को दर्शाने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए निम्न कहावत में बड़े लोगों के झगड़े में आम जनता की होने वाली बर्बादी को घास की बर्बादी के रूप में प्रतीकात्मक रूप में दर्शाया गया है। 

  1. घोड़ा जूजीना दूब को नाश (When two horses fight, the dub grass is destroyed) (When great powers come into collision, common folk suffer)

अर्थात् घास आम पहाड़ी जन-जीवन का प्रतीक माना जाता था जिसका जुड़ाव पहाड़ के हर घर से घनिष्ट होता है। यह पहाड़ के जानवरों के लिए इतना महत्वपूर्ण था कि लोगों का मानना था कि सिर्फ़ इसे खाकर घोड़ा भी किसी योद्धा की तरह तंदुरुस्त रह सकता है। जबकि मैदानो में लोगों की मान्यता थी कि एक घोड़ा बिना चने के तंदुरुस्त रह ही नहीं सकता है। 

घास के कई मायने:

घास से सम्बंधित और भी कई अन्य निम्न कहावतें हैं जिनमे कुछ विशेष घास (दूब) की तुलना औरत की सुंदरता से लेकर शेर की बहादुरी, लोमड़ी की चतुराई और माँ के आशीर्वाद तक से करता है: 

  1. श्यालकसि बुद्धि खूकसो तरान दूबकसि जड़ धरति को जसोछाड आकाश जसो उचो (the cleverness of a fox, the courage of a lion, the root of Duba grass (bent grass) for its evergreen and spreading nature, the length and breadth of the earth, and the height of the heavens are proverbial and all these wished for the mothers for their sons as blessings)
  2. देखनी दरसनी दाबा सीछड़ करना कमूनसों आटा कीसी लड़ (to look at a very beautiful women, like a reed of daba (a kind of long grass that flowers in September) but for usefulness or worth like a string of paste) (applied to a lazy woman more ornamental than useful)

पहाड़ के सभी घास उतने उपयोगी नहीं होते थे पर फिर भी उनका इस्तेमाल अलग-अलग कहावतों में मौसम की पहचान करने, जाति उलाहन, बेतुका व्यवहार और जानवरों के इलाज के लिए भी किया गया है। 

इसे भी पढ़ें: पहाड़ी कहावतों के सहारे महिला का अपमान ?

  1. आया सराध फूला कांस बामन कूदा नौ नौ बांस (at the approach of Kansyagatha: fifteen days of the shradda fortnight which according to astrological calculations occurs in the months of September and October) when the kansa grass used in sacrifices and religiously begins to flower, the Brahmans leap with joy nine bamboos high)(used by non-brahmins who have to feed them during this period)
  2. बिरालू को घा (a cat’s eating grass) (cat are sometimes observed eating a particular kind of grass, which is regarded as unnatural. Used of a man’s beginning to contract bad habit)
  3. नाख जोक पोका असेड़ू (Leeches in the nose, aserhu (grass) applied to the rectum) (Aserhu is an irritating grass the smell of which causes sneezing)

घास से सम्बंधित हमारा अगला लेख पहाड़ में घास, घसियारी और घसियारी योजना के इतिहास पर केंद्रित होगा। अगले लेख में जिस तरह उत्तराखंड सरकार ने घसियारी योजना शुरू किया है उसी तरह देश के अन्य राज्यों में चारा से सम्बंधित योजनाओं की उत्तराखंड के परिपेक्ष में समीक्षा भी की जाएगी। 

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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