वर्ष 1948 में यूनिस्को ने ‘गिफ्ट कूपन योजना‘ के तहत दुनियां के कुछ युद्ध और पिछड़ेपन से प्रभावित देशों के कुछ विद्यालयों का चयन किया जहाँ शैक्षणिक पिछड़ापन बहुत अधिक था। इन विद्यालयों में से एक विद्यालय हल्द्वानी में भी था। यह योजना वर्ष 1975 तक इसी नाम से चला और 1976 से 2005 तक UNESCO Co-Action योजना के नाम से चला जिसके बाद इस योजना को बंद कर दिया गया. हालाँकि यह योजना गरीब देशों के लिए शुरू किया गया था लेकिन प्रारंभिक वर्षों में इस योजना का सर्वाधिक लाभ विकसित देशों ने उठाया और अपने ही देश के पिछड़े शिक्षण संस्थानों को इस योजना के तहत मदद किया.
हल्द्वानी:
हल्द्वानी ब्रिटिश राज के लिए कुमाऊ का प्रवेश द्वार और शीतकालीन राजधानी समझा जाता था जहाँ अंग्रेज शर्दी के दिनों में प्रवास करते थे और गर्मी में नैनीताल चले जाते थे। बीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों तक देवभूमि यात्रा (केदारनाथ-बद्रीनाथ) के चार प्रवेश द्वारों में से हल्द्वानी ही सर्वाधिक प्रसिद्द और व्यस्त प्रवेश द्वार था। तीन अन्य प्रवेश द्वार थे: काशीपुर, कोटद्वार और हरिद्वार।

माना जाता है कि उन्नीसवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों तक हल्द्वानी जंगल-झाड़ से भरा हुआ था जहाँ लोग कुमाऊ के पहाड़ों में प्रवेश करने से पहले विश्रामस्थल के रूप में सिर्फ अस्थाई रूप से विश्राम करते थे। उत्तराखंड में अंग्रेजी शासन प्रारंभ होने के बाद हल्द्वानी में स्थाई सरकारी निवास, दफ्तर, हॉस्पिटल, के साथ साथ विद्यालय भी बने। उन्नीसवीं सदी के आखरी वर्षों तक यहाँ आर्य समाज भवन और सनातन धर्म सभा का भी निर्माण होने लगा जो भारतियों के शैक्षणिक और अध्यात्मिक विकास के लिए कार्य करते थे। इसी दौरान हल्द्वानी के एक विद्यालय को यूनिस्को के द्वारा चलाई जा रही ‘गिफ्ट कूपन योजना’ के तहत बहुत सारी किताबें और शिक्षण सामग्री मिली.
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गिफ्ट कूपन योजना:
राष्ट्र संघ की विफलता के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की शाखा के रूप में 16 नवम्बर 1945 में स्थापित यूनिस्को ने दुनियां के आम लोगों और संस्थाओं के साथ नजदीकी सम्बन्ध स्थापित करने की भावना से वर्ष 1948 में ‘गिफ्ट कूपन योजना‘ प्रारंभ किया। इस योजना के तहत यूनिस्को ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, जैसे विश्व के चयनित अमीर और विकसित देशों में गिफ्ट कूपन जारी किया। लेकिन इस योजना को अपनाने वाला पहला देश अमेरिका था जिसने इसे 15 दिसंबर 1950 को ट्रायल के रूप में प्रारंभ किया.
उक्त विकसित देशों के नागरिक या समाजसेवी संस्थाएं या निजी कंपनी यूनिस्को द्वारा जारी इस कूपन को खरीदकर अपनी मर्जी के अनुसार विश्व के पिछड़े देशों में यूनिस्को द्वारा चयनित किसी भी विद्यालय/कॉलेज या शिक्षण के क्षेत्र में कार्य करने वाले सामाजिक संस्था को दान कर सकते थे। ये विद्यालय/संस्था जमा कूपन को यूनिस्को को भेजते थे और बदले में विद्यालय को उतनी कीमत की किताबें, लैब यंत्र, रेडिओ आदि दिया जाता था।

अमेरिका में गिफ्ट कूपन योजना के एक कूपन की कीमत न्यूनतम 25 सेंट अर्थात एक चौथाई अमरीकी डॉलर थी ताकि व्यक्तिगत तौर पर भी लोग इस कूपन को खरीद सके। सामाजिक संस्थाओं व् निजी कंपनियों के लिए दस डॉलर तक के कूपन जारी किये गए थे जो उक्त कंपनी/संस्था के कर्मचारी/सदस्य या आम जनता कोभी समग्र रूप खुदरा रूप में बेच सकते थे। जमा रकम को उक्त संस्था या कंपनी यूनिस्को भेजती थी और उसके बदले यूनिस्को शिक्षण सामग्री भेजती थी.
हल्द्वानी के परे:

हल्द्वानी के अलावा बॉम्बे में भी एक संस्था ‘बॉम्बे सोशल एजुकेशन समिति‘ ने ‘गिफ्ट कूपन योजना’ योजना का लाभ उठाया. गिफ्ट कूपन योजना के सहारे समिति ने मुंबई के चौल (झुग्गी) रहने वाले लोगों के बीच साक्षरता और सामाजिक जागरूकता फैलाने के लिए रेडियो, फिल्म रील, अदि प्राप्त किया. इसके अलावा इस योजना के तहत श्रीलंका में दृष्टिहीन विद्यार्थियों के विद्यालय को मदद किया गया और ग्रीस, अरब, और मध्य पूर्व समेत दुनियां के 35 देशों को शैक्षणिक सहायता पहुंचाई गई.

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