HomeArchiveUttarakhand Rajya Andolanपृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन का टाइमलाइन

पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन का टाइमलाइन

26 जुलाई 1979: पृथक राज्य के उद्देश्य से ‘उत्तराखंड क्रांति दल’ की स्थापना 

जुलाई 1987: कर्णप्रयाग में हुए उत्तराखंड क्रांति दल के अधिवेशन में पृथक उत्तराखंड राज्य रेजुलूसन पास किया गया। 

1989: पृथक राज्य की लड़ाई लड़ने के लिए ‘उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति की स्थापना की गई जिसमें तमाम राजनीतिक और ग़ैर-राजनीतिक पार्टियाँ एक साथ एक मंच पर आइ।  

जुलाई 1992: उत्तराखंड क्रांति दल ने ग़ैरसेन को पृथक उत्तराखंड राज्य की भावी राजधानी बनाने की घोषणा किया। 

जुलाई 1994: सपा और बसपा की गठबंधन की सरकार ने उत्तराखंड समेत पूरे उत्तरप्रदेश में OBC के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की घोषणा की। जिसके ख़िलाफ़ पूरे उत्तराखंड में छात्रों ने आंदोलन शुरू कर दिया। 

02 अगस्त 1994: पौड़ी शहर में उत्तराखंड के गांधी कहे जाने वाले इंद्रमणी बाडोनी जी ने भूख-हड़ताल शुरू किया। 

06 अगस्त 1994: श्रीनगर गढ़वाल विश्वविध्यालय के छात्र जो OBC आरक्षण के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे थे वो भी इंद्रमणी बाडोनी जी के धरने में शामिल हो गए। 

07-08 अगस्त 1994: सात अगस्त की रात में पौड़ी पुलिस द्वारा धरने को ख़त्म करने का प्रयास किया गया। इंद्रमणी बाडोनी जी को गिरफ़्तार कर मुज़फ़्फ़रनगर भेज दिया गया और छत्रों को पीटा गया। विरोध में स्थानिय लोगों ने पुलिस पर पथराव किया, आगज़नी और सरकारी दफ़्तरों में तोड़फोड़ किया। यह सिलसिला अगले दिन भी जारी रहा। 

09 अगस्त 1994: उत्तरकाशी में Uttarakhand People’s Front के कार्यकर्ताओं द्वारा गिरफ़्तारियाँ दी गई। 

15 अगस्त 1994: उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापक काशी सिंह ऐरी ने नैनीताल में राज्य की माँग के साथ भूख हड़ताल शुरू किया। इसी दिन कर्णप्रयाग में आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज किए गए। 

16 अगस्त 1994: ऋषिकेश में आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज किए गए

17 अगस्त 1994: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उत्तराखंडियों के ख़िलाफ़ यह बयान दिया कि ‘उनकी सरकार पहाड़ के 17 विधायकों पर नहीं निर्भर है।’ इस बयान का ज़ोरदार प्रतिरोध हुआ और आंदोलन को एक नई ऊर्जा मिली। 

18 अगस्त 1994: उखिमठ में पुलिस ने आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज फ़ाइरिंग किया। 

21 अगस्त 1994: पहाड़ के शिक्षक संघ ने आंदोलन को समर्थन दिया। हल्द्वानी में रोज़गार कार्यालय को आग लगा दी गई। गैरसैन में BDO समेत 87 सरकारी सेवकों ने त्यागपत्र दे दिया और प्रदेश में अलग अलग जगहों पर 35 सरकारी कार्यालयों में ताला लगा दिया गया। गैरसैन में लगभग एक समानांतर सरकार बना दी गई जिसने सरकार के सारे कार्यों और कार्यालयों पर क़ब्ज़ा कर लिया। 

26-27 अगस्त 1994: पिथौरागढ़ में 43 महिला समेत कुल 253 लोगों ने गिरफ़्तारी दी। 

29 अगस्त 1994: UK People’s Front, CPI, और CPI (ML) ने समग्र रूप से आंदोलन को समर्थन दिया। CPM ने समर्थन देने से इंकार किया। 

30 अगस्त 1994: टेहरी में आरक्षण समर्थक और आरक्षण विरोधियों के बिच झड़प हुई। आरक्षण का समर्थन करने वाले लोग आंदोलन का समर्थन नहीं कर रहे थे। सेवानिवृत सेना के लोगों ने आंदोलन को समर्थन दिया। 

उत्तराखंड के लिए खूनी संघर्ष प्रारम्भ:

01 सितम्बर 1994: खटिमा में आंदोलन के समर्थन में हुए जुलूस पर पुलिस ने गोलियाँ चलाई जिसमें भगवान सिंह सिरौला,प्रताप सिंह,सलीम अहमद, गोपीचंद,धर्मानंद भट्ट व परमजीत सिंह शहीद हो गए। 

02 सितम्बर 1994: खटिमा में पुलिस द्वारा चलाई गई गोलियाँ और हत्या के ख़िलाफ़ मसूरी में शांतिपूर्वक हो रहे जुलूस पर पुलिस ने फिर गोलियाँ चलाई जिसमें धनपति सिंह ,मदन मोहन ममगई, बेलमती चौहान, हंसा धनई, बलबीर सिंह नेगी और राय सिंह बंगारी शहीद हो गए। इसके अलावा नैनीताल में 277 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया। खटिमा बंद के दौरन एक पत्रकार को आंदोलनकरियों ने पिटा क्यूँकि वो बंद का विरोध करते हुए दफ़्तर जाने का प्रयास कर रहा था। 

03 सितम्बर 1994: आंदोलन में अभी भी आरक्षण का मुद्दा आगे था, अख़बारों में अभी भी आंदोलन को ‘आरक्षण विरोधी आंदोलन’ लिखा जा रहा था। 

04 सितम्बर 1994: अब इस आंदोलन को आखबारों में ‘अलग राज्य के माँग को धीरे धीरे प्रमुखता से छापा जाने लगा। 

05 सितम्बर 1994: आंदोलन मुख्यतः पहाड़ों में प्रखर था। इस दिन कई स्थानो पर लड़कियों विरोध स्वरूप क्षेत्र में तैनात पुलिसकर्मियों को चूड़ियाँ दिया। 

06 सितम्बर 1994: पूरे पहाड़ में कर्फ़्यू में ढील दी गई जिसके बाद काशीपुर में महिलाओं ने जुलूस निकाला। 

09 सितम्बर 1994: पंत नगर में बंद से परेशान कुछ मज़दूरों ने आंदोलनकारियों पर हमला किया। अब आंदोलन ग्रामीण क्षेत्रों में भी फैलना शुरू कर दिया था। 

सितम्बर 1994 आंदोलन के समर्थन में पौड़ी से नैनीताल तक पदयात्रा जिसमें अद्वेत बहुगुणा, मनोज दुर्बी आदि शामिल थे। 

इसे भी पढ़े: इतिहास के प्रति इतना उदासीन क्यूँ है पहाड़?

01 अक्तूबर 1994: पूरे पहाड़ से दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों के एक जत्थे को रामपुर तिराहा पर रोककर उनपर पुलिस द्वारा गोलियाँ चलाई गई और महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। इस घटना में सूर्य प्रकाश थपलियाल, राजेश लखेड़ा, रविंद्र सिंह रावत, राजेश नेगी, सत्येंद्र चौहान, गिरीश भद्री, अशोक कुमार कैशिव शहीद हुए। इस घटना के बाद महिला और पृथक राज्य का विषय आंदोलन के केंद्र में आ गया और आरक्षण का मुद्दा गौण होने लगा। 

03 अक्तूबर 1994: देहरादून में रामपुर तिराहे घटना का विरोध कर रहे आंदोलनकारियों पर सपा के नेता सूर्यकांत धसमाना ने गोली चलाई जिसमें रविंद्र रावत शहीद हो गए। शहीद रविंद्र रावत के चिता यात्रा पर पुलिस ने गोली चलाई जिसमें तीन अन्य आंदोलनकारी (बलवंत सिंह सजवान, दीपक वालिया,राजेश रावत) शहीद हो गए। इसी तरह कोटद्वार में हुए प्रदर्शन में राकेश देवरानी, और पृथ्वी सिंह बिष्ट शहीद हो गए और नैनीताल (प्रताप सिंह) और ऋषिकेश में एक एक आंदोलनकारी शहीद हुए। 

06 अक्तूबर 1994: PUCL और महिला आयोग रामपुर तिराहा का दौरा किया और इस सम्बंध में अपनी रेपोर्ट जारी की। 

07 अक्तूबर 1994: पुलिस ने एक महिला पर गोली चलाई जिसमें उसकी मृत्यु हो गई। गुस्साई भिड़ ने थाने को लुट लिया और पुलिसकर्मियों को बिना वर्दी के परेड कराया। 

07 अक्तूबर 1994: उच्च न्यायालय ने घटना की जाँच के लिए CBI को आदेश दिए पर CBI सीमित संसाधनो का हवाला देकर केस लेने से मना किया पर न्यायालय की फटकार के बाद उन्हें ऊपर मन से ही सही केस की जाँच करनी पड़ी। 

13 अक्तूबर 1994: देहरादून में कर्फ़्यू के दौरन एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई। 

14 अक्तूबर 1994: दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरु विश्वविध्यालय के छात्रों ने उत्तराखंड आंदोलन के समर्थन और महिलाओं के साथ हुए अत्याचार के ख़िलाफ़ दिल्ली में प्रदर्शन किया। 

15 अक्तूबर 1994: देहरादून में प्रदर्शन के दौरन एक अन्य आंदोलनकारी की मृत्यु हो गई।

27 अक्तूबर 1994: देश के गृह मंत्री राजेश पायलय और आंदोलनकारियों के बिच मीटिंग हुई जिसका उत्तराखंड महिला मंच ने विरोध किया क्यूँकि आठ लोगों की प्रतिनिधी मंडल में सिर्फ़ एक महिला को स्थान दिया गया। 

30 अक्तूबर 1994: BJP ने अपने आप को संयुक्त संघर्ष समिति से अलग करके पृथक आंदोलन चलाने लगी जिसमें पार्टी के झंडों का इस्तेमाल करने लगी। BJP उत्तराखंड के स्थान पर ‘उत्तरांचल’ शब्द का इस्तेमाल करने लगी। आंदोलन के लिए बनी संयुक्त संघर्ष समिति में फुट बढ़ने लगी। 

दिसम्बर 1994: BJP और कांग्रेस आंदोलन के कमजोर करने का आरोप संयुक्त संघर्ष समिति पर लगाने लगी। 

10 नवम्बर 1995: त्रियंक टापू (श्रीनगर) में पुलिस ने दो आंदोलनकारियों (राजेश रावत, और यशोधर बेंजवाल) की हत्या करके अलखनंदा नदी में फेंक दिया। 52 अन्य आंदोलनकारियों पर भी FIR किया गया। 

5 अगस्त 1996: प्रधानमंत्री ने पृथक उत्तराखंड राज्य की स्थापना को मंज़ूरी दी।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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