HomeHimalayasपंडित नेहरु कितनी बार आए थे उत्तराखंड ?

पंडित नेहरु कितनी बार आए थे उत्तराखंड ?

पंडित नेहरु ने अपने उत्तरखंड प्रवास का ज़्यादातर समय जेल में गुज़ारा और इस दौरन हमेशा पढ़ने-लिखने में व्यस्त रहते थे।

पहली यात्रा:

पंडित नेहरु की उम्र महज़ 8 या 9 वर्ष रही होगी जब वो जीवन पहली बार उत्तरखंड के पहाड़ों में ट्रेकिंग के लिए आए थे। वर्ष 1897 में पंडित नेहरु अपने पिता मोती लाल नेहरु के साथ अल्मोडा से पिंडर ग्लेसियर तक ट्रेकिंग किया था।

दूसरी यात्रा:

पंडित जी की उत्तरखंड की दूसरी और मसूरी की पहली यात्रा वर्ष 1906 में हुई जब वो अपने पिता के साथ मसूरी आए थे। मसूरी की सुंदरता से वो इतने प्रभावित थे कि उन्होंने अपनी माँ को लिखे पत्र में मसूरी की सुंदरता का विस्तार से वर्णन किया। इसके बाद नेहरु जी अपने परिवार के साथ अक्सर मसूरी छुट्टियाँ बिताने आते रहते थे।

तीसरी यात्रा:

वर्ष 1920 में पंडित जी अपनी पत्नी और बेटी इंदिरा के साथ मसूरी आए और सेवाय होटल में रुके। इसी होटल मेन ब्रिटिश-अफ़ग़ान संधि के लिए दोनो पक्ष के अधिकारी रुके हुए थे। पंडित जी के होटेल में मौजूद होने की खबर जब अंग्रेजों को लगी तो उन्होंने पंडित जी को होटल से निकल दिया था।

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चौथी यात्रा:

नेहरु जी की चौथी यात्रा काठगोदाम से रामगढ़ तक घोड़े के पीठ पर हुई जब वर्ष 1921 में वो अपने पिता से मिलने रामगढ़ जाते हैं। इसके बाद वर्ष 1921 से 1929 के बिच पंडित जी लगातार नैनीताल जाते रहे।

पाँचवीं यात्रा:

मार्च 29 और 30, 1925 के दौरन पंडित जी देहरादून आए जहाँ उन्हें एक राजनीतिक कांफ्रेंस में मुख्य वक्ता के रूप में अभिभाषण देना था। यह पंडित जी की पहली देहरादून की यात्रा थी जिसके बाद वो बार बार इस शहर में आते रहे।

छठी यात्रा:

पंडित जी वर्ष 1929 में नैनीताल होते हुए अल्मोडा जा रहे थे लेकिन रास्ते में अपने पिता की ख़राब स्वस्थ्य की सूचना मिलने के बाद वो मसूरी चले गए जहाँ उनके पिता ठहरे हुए थे।

नेहरु का देहरादून जेल
चित्र 1: देहरादून जेल जहाँ नेहरु सजा काट चुके थे। (फ़ोटो साभार: NMML, नई दिल्ली)

सातवीं यात्रा:

7 जून 1932 से 9 अगस्त 1933 तक पंडित जी को सविनय अवज्ञा आंदोलन को दुबारा प्रारंभ करने की अंदेशा के आधार पर गिरफ़्तार करके देहरादून जेल भेज दिया गया जहाँ उन्हें चौदह महीने तक रखा गया। यह पहली दफ़ा था जब नेहरु को पहाड़ों के जेल में रखा गया था। इसी दौरन नेहरु जी ने अपनी पुत्री इंदिरा को कई पत्र लिखे। इसी दौरन पंडित जी ने अपने कई किताबों की निव भी रखी।

आठवीं यात्रा:

9 मार्च 1934 से 11 अगस्त 1934 तक नेहरु जी को फिर से देहरादून जेल भेज दिया गया। इसी दौरन 4 जून को उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘Inside and Outside Jail’ लिखना प्रारम्भ किया।

अल्मोडा जेल जहाँ पंडित नेहरू सजा काट चुके थे
चित्र 2: अल्मोडा जेल जहाँ पंडित नेहरू सजा काट चुके थे

नौवीं यात्रा:

इस बार नेहरु जी को अल्मोडा जेल भेजा गया जहाँ वे 28 अक्तूबर 1934 से 15 अगस्त 1935 तक जेल में रहे। वर्ष 1897 के बाद यह नेहरु की पहली अल्मोडा यात्रा थी। इस अल्मोडा जेल के दौरन 14 फ़रवरी 1935 को पंडित जी ने अपनी आत्मकथा का लेखन पुरा किया।

‘नेहरु की पहली गढ़वाल यात्रा’

दसवी यात्रा:

25 से 28 नवम्बर 1936 को नेहरु जी पहली बार गढ़वाल के पहाड़ों में गए जहाँ कोटद्वार व दुगड्डा का सड़क के रास्ते भ्रमण किया। इस यात्रा के दौरन पंडित जी अपनी पुत्री इंदिरा को पत्र भी लिखा और गढ़वाल की सुंदरता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यहाँ दुबारा आने का मन बना लिया था।

इग्यारहवीं यात्रा:

19 जनवरी 1937 को देहरादून में एक भाषण देने के लिए दून आए।

बारहवीं यात्रा:

पहली बार पंडित जी खली इस्टेट स्थित अपने जीजाजी के घर आए और 10 मार्च से 26 मार्च 1938 तक यहीं समय बिताया। इस प्रवास के दौरन पंडित जी नंदा देवी शिखर की सुंदरता के क़ायल हो गए। इसी दौरन वो अपनी पुत्री इंदिरा गंधी को पौत्र राजीव को हिमालय की सैर करवाने का सलाह भी देते हैं।

चित्र 3: देहरादून जेल में पंडित नेहरु। (फ़ोटो साभार: NMML, नई दिल्ली)

तेरहवीं यात्रा:

अपनी योजना के अनुसार पंडित जी अपनी बहन विजय लक्ष्मी पंडित के साथ एक मई से पाँच मई 1938 तक पाँच दिन की अपनी गढ़वाल यात्रा पर आए। इस दौरन वो गौचर हवाई पट्टी के रास्ते श्रीनगर, देवप्रयाग और पौड़ी शहर का भी भ्रमण किया। श्रीनगर शहर की सुंदरता से प्रभावित होकर उन्होंने इस शहर को हिंदुस्तान का स्वीटज़रलैंड बता दिया। इस यात्रा के दौरन पंडित जी ने गौचर हवाई पट्टी से केदारनाथ और बद्रीनाथ के लिए भी हवाई यात्रा किया।

चौदहवीं यात्रा:

26 जनवरी 1939 को पंडित जी अल्मोडा एक संवाद के लिए आए। इस सभा के दौरन पंडित जी ने अस्कोट के किसानो की बुरी हालत के पक्ष में आवाज़ नहीं उठाने के लिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं से शिकायत करते हैं।

पन्द्रहवीं यात्रा:

देहरादून जेल में पंडित जी एक बार फिर से 16 नवम्बर 1940 से लेकर 5 मार्च 1941 तक बंद रहे। इसी कारावास के दौरन पंडित जी ने ‘Discovery of India’ किताब लिखना प्रारम्भ किया। इस दौरन किताब लिखने में पंडित जी इतने मशगूल रहे कि वो अपने किसी परिवार या दोस्त से मिलने तक से इंकार कर दिया।

चित्र 4: अल्मोडा जेल का वो कक्ष जहाँ पंडित नेहरु ने सजा काटे थे। (फ़ोटो साभार: NMML, नई दिल्ली)

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सोलहवीं यात्रा:

10 से 15 जून 1945 के दौरन अल्मोडा जेल में बिताया गया समय पंडित जी का इस शहर ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के किसी भी जेल मेन बिताया गया इनका का आख़री कारावास था।

सत्रहवीं यात्रा:

वर्ष 1952 की चुनावी यात्रा के दौरन नेहरु जी कुमाऊँ आते हैं और रानीखेत में 18 फ़रवरी को सभा करते हैं। ये उनके जीवन का एक मात्रा चुनावी यात्रा था उत्तरखंड की धरती पर।

चित्र 5: देहरादून में दलाई लामा के साथ मुलाक़ात के दौरन पंडित नेहरु। (फ़ोटो साभार: NMML, नई दिल्ली)

अठारहवीं यात्रा:

वर्ष 1959 में मसूरी आने पर पं. नेहरू ने हैप्पीवैली स्थित बिरला हाउस में तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा से मुलाकात की। इसी मुलाक़ात में दलाई लामा को भारत में संरक्षण (प्रवास) देने का फ़ैसला लिया गया।

उन्निसवी यात्रा:

अपनी देहांत के एक दिन पहले तक नेहरु जी पहाड़ों में ही थे। पंडित जी 24 मई को मसूरी और 25-26 मई 1964 को देहरादून में थे। 27 मई 1964 को नेहरु जी का नई दिल्ली में स्वर्गवास हो गया।

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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