HomePoliticsदेवस्थानम बोर्ड और गढ़ केसरी अनुसुइया प्रसाद बहुगुणा के बीच सम्बंध !!

देवस्थानम बोर्ड और गढ़ केसरी अनुसुइया प्रसाद बहुगुणा के बीच सम्बंध !!

देवस्थानम बोर्ड एक इतिहास का हिस्सा है जिसका कालखंड कम से कम एक सौ वर्ष पुराना है। एक समय था जब गढ़ केसरी अनुसुइया प्रसाद बहुगुणा ने मंदिर प्रबंधन में पुजारियों की मनमानी के ख़िलाफ़ सरकारी क़ानून बनवाने के लिए लड़ाई लड़ी थी।

क्या इतिहास देवस्थानम बोर्ड और गढ़ केसरी अनुसुइया प्रसाद बहुगुणा के बीच किसी सम्बंध को ओर इशारा कर सकता है? जिस अनुसुइया प्रसाद बहुगुणा को पहाड़ों में गढ़ केसरी, अर्थात् गढ़वाल का केसर माना जाता है, उसी अनुसुइया प्रसाद बहुगुणा ने वर्ष 1938 में बर्द्रीनाथ मंदिर के प्रबंधन में हो रही धांधली के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी, भूख हड़ताल किया और अंततः वर्ष 1939 में श्री बद्रीनाथ मंदिर प्रबंध क़ानून पास कराकर दम लिया।

स्वतंत्रता सेनानी अनुसुइया प्रसाद बहुगुणा वर्ष 1919 से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिये भगेदारी कर रहे थे। 1937 में जब हिंदुस्तान के सभी प्रांतों में स्वायत्त हिंदुस्तानी सरकार बनी तो उत्तर प्रदेश के गढ़वाल क्षेत्र का विधान परिषद सदस्य के रूप में अनुसुइया प्रसाद बहुगुणा गढ़वाल का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। गढ़वाल से विधान परिषद सदस्य के रूप में वर्ष 1939 में इन्होंने विधान परिषद में श्री बद्रीनाथ मंदिर प्रबंध क़ानून पास करवाकर दम लिया। 

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चित्र २: अनुसुइया प्रसाद बहुगुणा

देवस्थानम बोर्ड का इतिहास

श्री बद्रीनाथ मंदिर प्रबंध क़ानून 1939 से पहले बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिर समेत कुल 45 मंदिरों का संचालन 1863 की XX ऐक्ट के तहत संचालित होती थी। श्री बद्रीनाथ मंदिर प्रबंध क़ानून 1939 के तहत इन 45 मंदिरों का संचालन के लिए एक कमिटी का गठन किया गया जिसमें कुल 6 निर्वाचित और अध्यक्ष समेत आठ अन्य सदस्य राज्य सरकार द्वारा मनोनीत किए जाने थे। अर्थात् सरकार द्वारा मनोनीत सदस्यों की संख्या निर्वाचित सदस्यों से कहीं ज़्यादा थी। 

इनमे से दो सदस्य उत्तर प्रदेश विधान सभा से, एक सदस्य उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य से, एक सदस्य गढ़वाल (उस दौर में चमोली गढ़वाल ज़िले का हिस्सा था) एक उत्तरकाशी, व एक टेहरी ज़िला परिषद से निर्वाचित होने थे। जिन ज़िलों में ज़िला परिषद नहीं था वहाँ ज़िला कलेक्टर को ये सदस्य मनोनीत करने का अधिकार दिया गया। अर्थात् सरकार द्वारा मनोनीत सदस्यों का भारी दवदवा था इस मंदिर समिति के ऊपर। 

देवस्थानम बोर्ड के बिना रावल
चित्र ३: बद्रीनाथ के रावल (पुजारी); (स्त्रोत: Kamet Conquered by S. Smythe)

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कुछ ऐसा ही प्रावधान है देवस्थानम बोर्ड की संरचना में भी है जिसमें सरकार और सरकारी अधिकारियों द्वारा मनोनीत अधिकारियों का देवस्थानम बोर्ड पर दवदवा है। राज्य के मुख्यमंत्री खुद बोर्ड के चेयरमैन बन बैठे, और धार्मिक मामले के कैबिनेट मंत्री को वाइस चेयरमैन बना दिया। गंगोत्री और यमनोत्रि क्षेत्र के विधायक साहब के साथ चीफ़ सेक्रेटेरी को भी बोर्ड का मेम्बर बना दिया और बोर्ड का चीफ़ इग्ज़ेक्युटिव ऑफ़िसर एक IAS अधिकारी को। 

वर्ष 1941 से 1991 के बीच इस क़ानून (श्री बद्रीनाथ मंदिर प्रबंध क़ानून 1939) में 11 बार बदलाव किए गए और तक़रीबन सभी बदलाओं में समिति के अधिकारों को मज़बूत और सरकार की समिति पर पकड़ को कमजोर किया गया। अर्थात् समिति में स्थानीय लोगों और निर्वाचित सदस्यों को अधिक स्वायत्ता दी गई। 1991 आते आते सरकार अब मंदिर समिति के सदस्यों को अकारण नहीं हटा सकती थी और न ही समिति को भंग कर सकती थी। मंदिर के फंड के संचालन पर समिति की पूरी स्वायत्ता दे दी गई। 

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पृथक उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही जैसे जैसे प्रदेश की राजनीति में ब्रह्मणो का दवदवा कम हो रहा है राजपूतों (ठाकुरों) का दवदवा बढ़ रहा है वैसे वैसे ही मंदिर समिति के स्वायत्ता पर हमला करने का प्रयास किया जा रहा है। 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद उत्तराखंड सरकार के पास मंदिर समिति के अधिकारों को अनदेखा करने और देवस्थानम बोर्ड की पठकथा लिखने का मौक़ा मिला और उसके बाद देवस्थानम बोर्ड के सहारे उनके अधिकारों को पूरी तरह कुचलने का फ़ैसला लिया गया। देवस्थानम बोर्ड की अच्छाइयाँ और बुराइयों पर विवाद में आप चाहे जिस पक्ष का साथ ले पर इतिहास आपसे सवाल ज़रूर करेगा। और वो सवाल है….

अगर हम देवस्थानम बोर्ड को ग़लत साबित करने के लिए कमर कस चुके हैं तो क्या हम गढ़ केसरी अनुसुइया प्रसाद बहुगुणा को भी श्री बद्रीनाथ मंदिर प्रबंध क़ानून 1939 के लिए संघर्ष करने के लिए ग़लत साबित करने के लिए तैयार है? अगर बहुगुणा जी द्वारा किए गए संघर्ष से बने श्री बद्रीनाथ मंदिर प्रबंध क़ानून 1939 के तहत मंदिरों के प्रबंधन के लिए बने मंदिर समिति में आलोकतंत्रिक व उपनिवेशिक अंग्रेज़ी सरकार का दवदवा जायज़ था तो फिर आज की चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार का देवस्थानम बोर्ड में दवदवा क्यूँ नाजायज़ है? 

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Sweety Tindde
Sweety Tinddehttp://huntthehaunted.com
Sweety Tindde works with Azim Premji Foundation as a 'Resource Person' in Srinagar Garhwal.
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